भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"घर खड़े हैं सिर झुकाये / कुमार रवींद्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=च...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

15:29, 13 दिसम्बर 2015 के समय का अवतरण

बंद कमरे
थके परदे
धूप लेटी मुँह छिपाये
         इस शहर में कौन आये
 
खड़े रोशनदान बूढ़े
पीठ पर लादे अँधेरे
मंजिलों-दर-मंजिलों हैं
धुएँ के गुमनाम डेरे
 
दिन वहीं
बैठा अकेला
मेज पर कुहनी टिकाये
         इस शहर में कौन आये
 
खो गये हैं रास्ते सब
भीड़ सडकों पर बड़ी है
दर्द के ओढ़े दुशाले
नई मुस्कानें खड़ीं हैं
 
गुंबजों की
आड़ लेकर
घर खड़े हैं सिर झुकाये
         इस शहर में कौन आये