भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तोरा मन दर्पण कहलाये / भजन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
					
										
					
					|  (New page: तोरा मन दर्पण कहलाये   भले, बुरे सारे कर्मों को देखे और दिखाए    मन ही देवता...) | |||
| पंक्ति 14: | पंक्ति 14: | ||
| इस उजाले दर्पण पर प्राणी, धूल ना जमने पाए   | इस उजाले दर्पण पर प्राणी, धूल ना जमने पाए   | ||
| − | + | तोरा मन दर्पण कहलाये ....... | |
| पंक्ति 28: | पंक्ति 28: | ||
| जग से चाहे भाग ले कोई मन से भाग न पाये   | जग से चाहे भाग ले कोई मन से भाग न पाये   | ||
| − | + | तोरा मन दर्पण कहलाये ...... | |
03:33, 10 फ़रवरी 2008 का अवतरण
तोरा मन दर्पण कहलाये
भले, बुरे सारे कर्मों को देखे और दिखाए
मन ही देवता मन ही इश्वर 
मन से बड़ा न कोई
मन उजियारा ,जब जब फैले
जग उजियारा होए
इस उजाले दर्पण पर प्राणी, धूल ना जमने पाए
तोरा मन दर्पण कहलाये .......
सुख की कलियाँ, दुःख के कांटे
मन सब का आधार
मन से कोई बात छुपे न
मन के नैन हजार
जग से चाहे भाग ले कोई मन से भाग न पाये
तोरा मन दर्पण कहलाये ......
 
	
	

