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"रचना की ध्वनि / राग तेलंग" के अवतरणों में अंतर

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19:18, 19 दिसम्बर 2015 के समय का अवतरण

एक कोरा कागज़
कोरा ही रहे
कवियों को
यह बर्दाश्त नहीं होता

बहुत सारी कविताएं
मौन के साथ
पढ़े जाने के लिए होती हैं

कुछ को पढ़ो तो
श्वास थामनी पड़ जाती है

कभी-कभी तो
ऐसा भी हुआ
कवि कविता लिखकर
फिर वापस ही नहीं लौटा
कागज़ पर
एक आवाज़ भर ठहर गई

कविता तो बोलती है
कागज़ पर
जब लोग ध्यान से
किसी आवाज़ की
प्रतीक्षा करते हैं ।