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"सड़क की छाती पर चिपकी ज़िन्दगी ३ / शैलजा पाठक" के अवतरणों में अंतर
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बाजारों में बिकती है रोटी
छोटे बड़े तवों पर सिकती है रोटी
खूब तो चलता है
ये कारोबार
तो कम यों पड़ जाती है
बार-बार ।