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"सड़क की छाती पर चिपकी ज़िन्दगी ५ / शैलजा पाठक" के अवतरणों में अंतर
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क्रमश: कम मीठी होने लगी
पिता की चाय
जरा पतला हो गया दूध
संकुचित होने लगा कमरा
असर टूटे मिलते कुरते के बटन
दर्द ज्यादा
और मरहम कम होने लगे
मैली रहने लगी चादर
मछरदानी के फटे छेदों से
मच्छर से ज्यादा कुछ और
डंक मारता
पिताजी एक स्टूल पर समेट दिए गए
आर्थिक मंदी का असर
रिश्तों पर भी होता है।