भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कमाल की औरतें २५ / शैलजा पाठक" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शैलजा पाठक |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=शैलजा पाठक
 
|रचनाकार=शैलजा पाठक
 
|अनुवादक=
 
|अनुवादक=
|संग्रह=
+
|संग्रह=मैं एक देह हूँ, फिर देहरी / शैलजा पाठक
 
}}
 
}}
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}

15:00, 21 दिसम्बर 2015 के समय का अवतरण

तुम्हारे पास हर रंग
का पिंजरा है
रंगीन वादे हैं

कटोरी में धरा पानी
छलकता सा है
मैं चूकना नहीं चाहती

मेरे पास एक ज़िन्दगी है

मैं अपनी उड़ान नील आकाश तक
आजमाना चाहती हूं

खाली पिंजरा हवा के साथ गोल-गोल
ƒघूम रहा है
तुम्हारा अहंकार मथ रहा है

खुले पंखों सा स्वप्न समंदर की
सबसे बड़ी लहर पर सवारी करने लगा।