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"सड़क की छाती पर चिपकी ज़िन्दगी १५ / शैलजा पाठक" के अवतरणों में अंतर

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15:18, 21 दिसम्बर 2015 के समय का अवतरण

दर्ज नहीं हो पाए कुछ चिडिय़ों के नाम
पेड़ पर ƒघर ना मिला
उडऩे को पर ना मिला
आसमान ने जलाया धूप बन कर
ज़मीन में धंसी रही
उनके हिस्से की भूख

उनकी कुर्बानी मजबूत
परों की उड़ान बनी
ये ना ज़मीन रही
ना आसमान बनी
इनके पंख से निचुड़ कर
कराहती हैं रातें
दिन की नुकीली किरचों से
ƒघायल इनकी आंखें

ये प्रेम करने जमीन पर आईं थीं
इन्हें गीत गाना था
ये आईना देख चुपचाप मुस्कराईं थीं
ये मन के हुलसते बादलों पर
इंद्रधनुष सी छाईं थीं

इनके गुलाबी चोंच में एक गुलाबी कहानी
इन्हें बनना था रानी

शहर के मुहाने पर लावारिस है इनकी लाश
पेड़ों, ƒघोंसलो, पंछियों की पंचायत ने
नहीं की इसकी पहचान
पता नहीं किस ग्रह से आई थी

राजकुमार ने धीरे से इसके मखमली मुर्दा पंखों को
अपनी डायरी में सजा लिया

प्रेम में उडऩे वाली चिडिय़ाएं
अपने आंचल ने बांधती हैं चांद-सूरज
धरती काली पड़ जाती है।