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"सड़क की छाती पर चिपकी ज़िन्दगी ११ / शैलजा पाठक" के अवतरणों में अंतर
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15:19, 21 दिसम्बर 2015 के समय का अवतरण
वो निर्णायक की भूमिका में थे
अपनी सफेद पगड़ियों को
अपने सर पर धरे
अपना काला निर्णय
हवा में उछाला
इज्जतदार भीड़ ने
लड़की और लड़के को
जमीन पर घसीटा
और गांव की
सीमा पर पटक दिया
सारी रात गांव के दिये
मद्धिम जले
गाय रंभाती रही
कुछ न खाया
सबने अपनी सफेद पगड़ी खोल दी
एक उदास कफ़न में सोती रही धरती
रेंगता रहा प्रेम गांव की सीमा पर।