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"दृश्य में कविता / परिचय दास" के अवतरणों में अंतर
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सिनेमा एक दृश्य-भाषा है
जिसमें हम देख लेते हैं अपनी छवियाँ
अपने दुख-सुख
अपना उछाह
अपनी मजबूरी
हम उस में जीते हैं अपनी सच्चाई
अपनी कल्पना
अपनी फंतासी
अपना सच केवल खुरदुरा यथार्थ नहीं होता
उस में ज़रूर कुछ ऐसा होता है
जिस से हमारा रूपक बनता है
जो केवल जिए सच को ही सच मानते हैं
वे सच को थोड़ा कमतर बनाते हैं
ज़िंदगी एक उत्प्रेक्षा भी है
जिस में भरी रंगावली है
तभी तो वह रंगों का संकुल है
एक ऐसी भाषा रचती पृथ्वी जिसमें विविध आयाम हैं
सिनेमा की तरह है ज़िंदगी
कुछ उसी तरह
कुछ उस से भिन्न प्रकट- अकथ शब्दों को आकार देती हुई ....