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"चाह तुम्हारी / कमलेश द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर
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मुझको कितनी चाह तुम्हारी.
हर पल देखूँ राह तुम्हारी.
मन करता है गीत सुनाऊँ,
और सुनूँ मैं वाह तुम्हारी.
आहत दिल को कितनी राहत,
देती एक निगाह तुम्हारी.
भूल न पाऊँ याद कभी भी,
आह तुम्हारी आह तुम्हारी.
सागर गहरा या तुम गहरे,
कैसे पाऊँ थाह तुम्हारी.
आओ-देखो-जानो मुझको,
कितनी है परवाह तुम्हारी.