भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"गजले-मीर रहेगी / कमलेश द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कमलेश द्विवेदी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
22:29, 24 दिसम्बर 2015 के समय का अवतरण
जब तक दिल में पीर रहेगी.
गजलों की जागीर रहेगी.
मीठी नहीं, नमकीन बना दो,
तो फिर क्या वो खीर रहेगी ?
राँझे तब तक पैदा होंगे,
जब तक कोई हीर रहेगी.
बँटवारे में सब कुछ ले लो,
मेरे सँग तकदीर रहेगी.
दिल में इमारत बन जाये तो,
होकर वो तामीर रहेगी.
महँगी मढ़ने से क्या हरदम,
ज्यों की त्यों तस्वीर रहेगी ?
हम न रहेंगे तो भी क्या है,
अपनी एक नजीर रहेगी.
कल भी अदब की बातें होंगी,
कल भी गजले-मीर रहेगी.