भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"उसकी दिनचर्या का अन्त / अवतार एनगिल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवतार एनगिल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

01:09, 25 दिसम्बर 2015 के समय का अवतरण

वह --
हर सुबह
मुंह-अँधेरे
चूल्हे के साथ जलती है
दाल की देगची में
बुद -बुद उबलती है
खाने की मेज़ पर
तरल होकर ढलती है.....
सबको खिलाती,
सबसे बाद खाती है

वह --
हर दोपहर
कभी न घिसने वाली शिला पर
सबके कपड़े धोती,
सहेलियों के दुःख पर
चुपके-चुपके रोती है

वह --
शाम ढले
बच्चों के कपड़े इस्तरी करते हुए
छोटी-छोटी प्रार्थनाएं रहती है
कि कहीं निगोड़ी बिजली न चली जाये। ..
ठीक उस समय
जब बचे विज्ञापन देखने में मग्न होते हैं

वह --
देर रात गये
चौके-बासन से निबटकर
हाथ पौंछते हुए
 बिस्तर तक आती है
और नींद ओढ़ने से पहले
दो इस्पाती हथेलियों में
कैद हो जाती है।