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"अष्टावक्र और दर्पण / अवतार एनगिल" के अवतरणों में अंतर

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11:39, 27 दिसम्बर 2015 के समय का अवतरण

मुझे बेजान दर्पण जान
अष्टावक्र मेरे सामने आया
और जमकर बैठ गया
ख़ुद से आँख चुराते हुए
उसने अपना चेहरा निहारा,
सौन्दर्य प्रसाधन वाली मायावी पिटारी खोली,
मेरे सामने फैलाई,
और मग्न हो गया
उस कुरूप आदमी ने
मुझे देखा
पर नहीं देखा

मुझे दिख गई मगर
उसकी आँख के भीतरी कक्ष में
छटपटाती,
लहराती,
एक नदी ।
तब, हज़ूर !
मेरी सत्यवादी ज़बान
अपने ही चिकने तल पर फिसलने लगी
वक्रोक्तियों में उलझने लगी
…दर्पण होते हुए भी
मैं
अष्टावक्र के वक्र छिपाने लगा
उसे सजाने लगा ।