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"आज सोमवार है / प्रदीप मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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उस पतवार का
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जिसने मझधार में डगमगाती नइया को
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                                लगाया पार
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प्रकाश
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      उस किरण का
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                जो अँधेरे के खिलाफ़
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                      फूटी पहली बार
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आस्वाद
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    उस हवा का
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      जो ऐन दम घुटने से पहले
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                        पहुँच गयी फेफड़ों में
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विश्वास
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    उस स्वप्न का जो नींद टूटने के बाद
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                  भी बना रहा आँखों में
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सबकुछ
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शामिल है मेरी टूटी बिखरी नींद में
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  मेरी नींद जहाँ स्वप्न मंगलमय हैं और
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                        आज सोमवार है।
  
 
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16:21, 2 जनवरी 2016 के समय का अवतरण


आज सोमवार है


साथ
उस चमक का
      जो पहली मुलाक़ात पर ही
                 भर गयी निगाहों में
हुलास
उस पतवार का
जिसने मझधार में डगमगाती नइया को
                                 लगाया पार
प्रकाश
      उस किरण का
                 जो अँधेरे के खिलाफ़
                      फूटी पहली बार
आस्वाद
     उस हवा का
जो ऐन दम घुटने से पहले
                         पहुँच गयी फेफड़ों में
विश्वास
    उस स्वप्न का जो नींद टूटने के बाद
                   भी बना रहा आँखों में
सबकुछ
शामिल है मेरी टूटी बिखरी नींद में
   मेरी नींद जहाँ स्वप्न मंगलमय हैं और
                        आज सोमवार है।