"बरसात में भींगती हुई लडक़ी – एक / प्रदीप मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | धरती के गर्भ में | ||
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+ | बरसात में भींगती हुई लड़की | ||
+ | जब तक अकेली भींगती रहती है | ||
+ | फैलकर आकाश हो जाना चाहती है | ||
+ | कमल की तरह खोल देना चाहती है | ||
+ | मन और जीवन की गांठें | ||
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+ | आजादी के तरंग में डूबी | ||
+ | इस भींगती हुई लड़की के हृदय से ही निकलता है | ||
+ | हरा रंग जिसे ओढ़ लेती है धरती | ||
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+ | बरसात में भींगती हुई लड़की को देखना | ||
+ | हरी-भरी धरती को देखने जैसा है। | ||
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16:27, 2 जनवरी 2016 के समय का अवतरण
बरसात में भींगती हुई लड़की – एक
अचानक शुरू हुई बरसात ने
भिंगो कर रख दिया सबको
भींगते ही उन्मत्त हो गए युवा
लहराने लगे बरसात की बूंदों के साथ
उनकी ऊर्जा देखकर गद-गद हो गया मन
मस्ती का आस्वाद
भीन गया परिवेश में
इस खुशनुमा माहौल में
एक लड़की भी भींग रही है
वर्षा की पहली बून्दों ने
एक चमक पैदा की उसके चेहरे पर
उसके अन्दर छुपी सारी सुन्दरता
प्रदीप्त होने लगी चेहरे पर
वह दुपट्टे की तरह लपेट रही है
बरसात की बून्दों को अपने बदन पर
और पिघलकर बह जाना चाहती है
धरती के गर्भ में
बरसात में भींगती हुई लड़की
जब तक अकेली भींगती रहती है
फैलकर आकाश हो जाना चाहती है
कमल की तरह खोल देना चाहती है
मन और जीवन की गांठें
आजादी के तरंग में डूबी
इस भींगती हुई लड़की के हृदय से ही निकलता है
हरा रंग जिसे ओढ़ लेती है धरती
बरसात में भींगती हुई लड़की को देखना
हरी-भरी धरती को देखने जैसा है।