"इसे धमकी की तरह से पढ़ा जाए / प्रदीप मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | मैं विवेक हूँ / उम्मीद हूँ / अजोर हूँ / हुँकार हूँ | ||
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+ | मैं समय की रगों में बहता हुआ लहू हूँ | ||
+ | मैं पांच तत्वों से बना शरीर हूँ | ||
+ | मेरे अंदर बसी है पूरी प्रकृति | ||
+ | मैं बसा हुआ हूँ प्रकृति में | ||
+ | माननीय से लेकर महामहीम तक के शब्दों | ||
+ | को दिया है मैंने ही जीवन | ||
+ | जब तक मैं दर्शक हूँ | ||
+ | कुछ नहीं हूँ | ||
+ | जिस दिन आवाज में बदल जाऊँगा | ||
+ | सब कुछ हूँ मैं | ||
+ | जब तक मैं सब कुछ हूँ | ||
+ | तभी तक बचा है यह लोक का महातंत्र | ||
+ | इसे धमकी की तरह से पढ़ा जाए | ||
+ | कि सब कुछ हूँ मैं । | ||
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16:38, 2 जनवरी 2016 के समय का अवतरण
इसे धमकी की तरह पढ़ा जाए
मैं संतरी हूँ / मुलाजिम हूँ / अर्दली हूँ / मजदूर हूँ / नौकर हूँ / सिपाही हूँ / सैनिक हूँ / नागरिक हूँ
मैं कौन हूँ
मैं खेत हूँ / खलिहान हूँ / फसल हूँ / कर्ज हूँ
मैं कौन हूँ
मैं भीड़ हूँ / सभा हूँ / विधान हूँ / राज्य हूँ / देश हूँ
मैं कौन हूँ
मैं लस्त हूँ / पस्त हूँ / त्रस्त हूँ / अभयस्त हूँ
मैं कौन हूँ
मैं ठोकर हूँ / लताड़ हूँ / फटकार हूँ / दुत्कार हूँ
मैं कौन हूँ
मैं खामोश हूँ / गुमसुम हूँ / स्तब्ध हूँ
मैं कौन हूँ
ठहरो बताता हूँ / मैं कौन हूँ
मैं विवेक हूँ / उम्मीद हूँ / अजोर हूँ / हुँकार हूँ
मैं समय की रगों में बहता हुआ लहू हूँ
मैं पांच तत्वों से बना शरीर हूँ
मेरे अंदर बसी है पूरी प्रकृति
मैं बसा हुआ हूँ प्रकृति में
माननीय से लेकर महामहीम तक के शब्दों
को दिया है मैंने ही जीवन
जब तक मैं दर्शक हूँ
कुछ नहीं हूँ
जिस दिन आवाज में बदल जाऊँगा
सब कुछ हूँ मैं
जब तक मैं सब कुछ हूँ
तभी तक बचा है यह लोक का महातंत्र
इसे धमकी की तरह से पढ़ा जाए
कि सब कुछ हूँ मैं ।