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"नाले / प्रदीप मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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16:47, 2 जनवरी 2016 के समय का अवतरण

नाले


हर शहर में पाये जाते हैं नाले
बिना नालों के सम्भव नहीं है शहर

जितना बड़ा शहर उतना चौड़ा नाला
महानगरों के लिए नदियाँ नाला

मकानों के सामने से गुज़रने की
इज़ाज़त नहीं होती
पिछवाड़े पैदा होते
वहीं से शुरू होती जीवन यात्रा
जब तक शहर से बाहर न हो जाएं
सुस्ताने का ठौर नहीं पाते नाले

इनके पेट से गुज़रती है
शहर की सारी गंदगी
और मस्तिष्क में ट्यूमर की तरह होती है
शहर की सभ्यता

नाले भी मनुष्यों की तरह
शहर का हिस्सा होते हैं
हिस्सेदार होते हैं

अच्छे-बुरे दिनों के
ढलते जाते हैं उम्र के साथ
बदलता रहता है इनका आकार
फर्क आता जाता है
इनके बहाव में

शहर के स्वास्थ्य के लिए ज़रूरी हैं
बहते हुए नाले
जिस तरह से घर के लिए
ज़रूरी होतीं हैं नालियाँ
चाँदनी के लिए काली रात
समुद्र के लिए ख़ारापन

ज़रूरी हैं कुछ बुरी चीज़ें भी
इस दुनिया की सुन्दरता के लिए ।