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"नींद / प्रदीप मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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नींद उस बच्चे की  
 
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मुस्कान उसके चेहरे पर
 
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सुबह की किरणों की तरह खिली हुई हैं
 
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नींद उस नौजवान की  
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जिसकी आँखों में करवट बदल रही है
 
जिसकी आँखों में करवट बदल रही है
 
एक सूखती हुई नदी
 
एक सूखती हुई नदी
  
 
नींद उस किसान की
 
नींद उस किसान की
जो रात भरú
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जो रात भर
बिवाई की तरह फटे खेतों में
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बिवाई की तरह फटे खेतों में
 
हल जोतकर लौटा है अभी
 
हल जोतकर लौटा है अभी
  
 
नींद उस युवती की  
 
नींद उस युवती की  
 
जिसके अन्दर   
 
जिसके अन्दर   
सपनों का समुन्द्र पछाड़ खा रहा है
+
सपनों का समुद्र पछाड़ खा रहा है
  
 
नींद उस बूढ़े की  
 
नींद उस बूढ़े की  
 
जिसकी आँखों में  
 
जिसकी आँखों में  
 
एक भूतहा खण्डहर बचा है
 
एक भूतहा खण्डहर बचा है
खण्डहर की ईंटों की रखवाली में
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जिसकी चौकीदारी में  
 
वह रातभर खाँसता रहता है
 
वह रातभर खाँसता रहता है
  
 
किसिम-किसिम की होती है नींद  
 
किसिम-किसिम की होती है नींद  
 
हर नींद के बाद जागना होता है
 
हर नींद के बाद जागना होता है
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जिस नींद के बाद   
 
जिस नींद के बाद   
जागने की गुँजाईश नहीं होती है  
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जागने की गुज़ँईश नहीं होती है  
 
वह मौत होती है।
 
वह मौत होती है।
 
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18:59, 2 जनवरी 2016 के समय का अवतरण

नींद


नींद उस बच्चे की
जिसे परियाँ खिला रहीं हैं
मुस्कान उसके चेहरे पर
सुबह की किरणों की तरह खिली हुई हैं
 
नींद उस नौज़वान की
जिसकी आँखों में करवट बदल रही है
एक सूखती हुई नदी

नींद उस किसान की
जो रात भर
बिवाई की तरह फटे खेतों में
हल जोतकर लौटा है अभी

नींद उस युवती की
जिसके अन्दर
सपनों का समुद्र पछाड़ खा रहा है

नींद उस बूढ़े की
जिसकी आँखों में
एक भूतहा खण्डहर बचा है
जिसकी चौकीदारी में
वह रातभर खाँसता रहता है

किसिम-किसिम की होती है नींद
हर नींद के बाद जागना होता है

जिस नींद के बाद
जागने की गुज़ँईश नहीं होती है
वह मौत होती है।