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"डूबते हुए हरसूद पर पाँच कविताएं / प्रदीप मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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(मुझे नहीं मालूम कि ये प्रतिक्रियाएँ साहित्य की किसी विधा की शिल्प में हैं या नहीं यह पढ़नेवालों पर छोड़ता हूँ।)
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''' डूबते हुए हरसूद पर पाँच कविताएं '''
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( हरसूद म.प्र. का एक गाँव है, जहाँ के निवासियों को बाँध निर्माण के कारण विस्थापित कर दिया गया। )
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''' एक – घर '''
  
(एक) - घर
 
  
 
जब भी कोई जाता
 
जब भी कोई जाता
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बेटियों की डोली
 
बेटियों की डोली
 
वह घर की औरतों से
 
वह घर की औरतों से
ज्यादा बिफ़रकर रोता
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ज़्यादा विफरकर रोता
  
 
जब भी जन्मते घर में बच्चे
 
जब भी जन्मते घर में बच्चे
 
गर्व से फैलकर
 
गर्व से फैलकर
अपने अन्दर जगह बनाता
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अपने अन्दर ज़गह बनाता
 
उनके लिए भी
 
उनके लिए भी
 
 
उत्सवों और सुअवसरों पर
 
उत्सवों और सुअवसरों पर
 
इतना प्रसन्न होता कि
 
इतना प्रसन्न होता कि
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ढह रहा है घर
 
ढह रहा है घर
  
घर विस्थापित हो रहा है ।
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घर विस्थापित हो रहा है।
  
(दो) - छूटा हुआ जूता
 
  
सुनसान सड़क पर छूटा हुआ है
 
एक पैर का जूता
 
  
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''' दो - छूटा हुआ जूता '''
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सुनसान सडक़ पर छूटा हुआ है
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एक पैर का जूता
 
उसे इन्तज़ार है
 
उसे इन्तज़ार है
 
हमसफ़र पाँव का  
 
हमसफ़र पाँव का  
 
जिसके साथ
 
जिसके साथ
 
टहलने जाना चाहता है
 
टहलने जाना चाहता है
पान की दूकान तक
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पान की दूक़ान तक
  
 
एक किनारे औंधा पड़ा हुक्का  
 
एक किनारे औंधा पड़ा हुक्का  
 
सुगबुगा रहा है
 
सुगबुगा रहा है
कोई आकर उसे गुड़गुड़ाए
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कोई आकर उसे गुडग़ुड़ाए
 
तो वह फिर जी जाएगा
 
तो वह फिर जी जाएगा
 
भर देगा रग-रग में तरंग
 
भर देगा रग-रग में तरंग
  
ठण्डा पड़ रहा है चूल्हा
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ठण्डा पड़ा चुल्हा
 
खेतों में खटकर लौटी भूख
 
खेतों में खटकर लौटी भूख
 
को देखकर जल उठेगा
 
को देखकर जल उठेगा
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नीला पड़ रहा है
 
नीला पड़ रहा है
 
उसे लटकने के लिए  
 
उसे लटकने के लिए  
नाजुक कन्धा मिल जाए तो
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नाज़ुक कन्धा मिल जाए तो
 
उसे बना देगा कर्णधार
 
उसे बना देगा कर्णधार
  
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और दरवाज़ों की ओट में पल्लवित प्रेम
 
और दरवाज़ों की ओट में पल्लवित प्रेम
 
विस्थापित हो रहा है
 
विस्थापित हो रहा है
अभी भी मिल जाएँ आतुर निगाहें तो
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अभी भी मिल जाऐं आतुर निगाहें तो
वे फिर रच देंगे हीर-राँझा
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वे फिर रच देंगे हीर-राँझां
  
 
नीम की छाँव में  
 
नीम की छाँव में  
धूप के चकत्तों का आकार बढ़ता जा रहा है
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धूप के चिलकों का आकार बढ़ता जा रहा है
  
 
खेतों के गर्भ में
 
खेतों के गर्भ में
 
बहुत सारी उर्वरा खदबदा रही है
 
बहुत सारी उर्वरा खदबदा रही है
 
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आख़िरी तारीख़ का ऐलान हो चुका है
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आखिरी तारिख़ का ऐलान हो चुका है
 
एक दिन इन सब पर  
 
एक दिन इन सब पर  
 
फिर जाएगा पानी
 
फिर जाएगा पानी
  
इस पानी से बनेगी बिजली
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इस पानी से बनेगी बिज़ली
 
जो दौड़ेगी  
 
जो दौड़ेगी  
नगर-नगर,गाँव-गाँव
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नगर-नगर, गाँव-गाँव
 
चारो तरफ विकास ही विकास होगा
 
चारो तरफ विकास ही विकास होगा
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एक दिन विकसित समाज में   
 
एक दिन विकसित समाज में   
कोई दबाएगा बिजली का खटका तो
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कोई दबाएगा बिज़ली का खटका तो
उसकी बत्ती से रौशनी की जगह
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उसकी बत्ती से रोशनी की जगह
 
विस्थापितों के जूते बरसेंगे
 
विस्थापितों के जूते बरसेंगे
 
जो पुलिस के डंडे की डर
 
जो पुलिस के डंडे की डर
से छूट गए थे सड़क पर
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से छुट गए थे सड़क पर
  
कोई टेबल लैम्प जलाएगा
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कोई टेबल लैम्प ज़लाएगा
 
पढ़ने के लिए
 
पढ़ने के लिए
उसके सामने फैल जाएगी
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उसके सामने फ़ैल जाएगी
 
बस्ते की स्याही
 
बस्ते की स्याही
 
जो खूँटी पर टँगा छूट गया था
 
जो खूँटी पर टँगा छूट गया था
  
 
कोई कम्प्यूटर का खटका दबाएगा
 
कोई कम्प्यूटर का खटका दबाएगा
तो उसके कम्प्यूटर के स्क्रीन पर
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तो उसके कम्प्युटर के स्क्रीन पर
 
उभरेगा मरणासन्न हुक्का  
 
उभरेगा मरणासन्न हुक्का  
 
पूछेगा कहाँ गए वो लोग
 
पूछेगा कहाँ गए वो लोग
जो मुझे गुड़गुड़ाते थे
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जो मुझे गुडग़ुड़ाते थे
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कोई हीटर का खटका दबाएगा
 
कोई हीटर का खटका दबाएगा
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तो हीटर पर रखी केतली में
 
तो हीटर पर रखी केतली में
 
उन चूल्हों के ख़ूनभरे आँसू उबलेंगे
 
उन चूल्हों के ख़ूनभरे आँसू उबलेंगे
जिनकी आग पानी डूब गई
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जिनकी आग पानी में डूब गयी
  
 
खेतों के गर्भ में खदबदाने के लिए
 
खेतों के गर्भ में खदबदाने के लिए
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सड़ रही होंगी जड़ें
 
सड़ रही होंगी जड़ें
  
फिर दबाते रहिए बिजली के खटके
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फिर दबाते रहिए बिज़ली के खटके
गाड़ते जाएँ विकास के झण्डे
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गाड़ते जाएं विकास के झण्डे
 
वहाँ कुछ नहीं बचेगा
 
वहाँ कुछ नहीं बचेगा
 
जीवन जैसा ।
 
जीवन जैसा ।
  
(तीन) - डूबता पीपल, तिरती स्लेट
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बढ़ रहा है नदी में पानी
 
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चढ़ रहा है गाँव पर
 
चढ़ रहा है गाँव पर
  
कसमसा रहे है खेत
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कसमसा रहे है खेत  
 
वर्षों पैदा किया अनाज
 
वर्षों पैदा किया अनाज
 
अब जम जाएगी उन पर काई
 
अब जम जाएगी उन पर काई
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या उनके अंदर बची हुई जड़ें
 
या उनके अंदर बची हुई जड़ें
सड़कर बदबू फैलाएँगी
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सडक़र बदबू फैलाएंगी
 
हो जाएगा जीना मुहाल
 
हो जाएगा जीना मुहाल
 
मर जाऐंगे खेत
 
मर जाऐंगे खेत
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अपनी टहनियों को ऊपर उठाए
 
अपनी टहनियों को ऊपर उठाए
 
चिल्ला रहा है
 
चिल्ला रहा है
 
 
अरे आओ रे आओ
 
अरे आओ रे आओ
 
बचाओ कोई
 
बचाओ कोई
अभी मेरे ज़िम्में बहुत सारी मन्नतें हैं
 
  
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अभी मेरे जि़म्में बहुत सारी मन्नतें हैं
 
जिनको पूरा करना है
 
जिनको पूरा करना है
 
अपनी छाया में खेलते-कूदते बच्चों को
 
अपनी छाया में खेलते-कूदते बच्चों को
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न रो रहा है
 
न रो रहा है
 
न बचाव के लिए चिल्ला रहा है
 
न बचाव के लिए चिल्ला रहा है
ख़ुद के आँसुओं से
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गल रहीं हैं उसकी दीवारें  
 
गल रहीं हैं उसकी दीवारें  
और चढ़ रहा है नदी का पानी
 
घर जल-समाधि लगा रहा है
 
  
देखते-देखते डूब गया हरसूद
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चढ़ रहा है नदी का पानी
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घर जल समाधि लगा रहा है
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देखते ही दखते डूब गया हरसूद
 
हाथियों नीचे पानी में
 
हाथियों नीचे पानी में
 
और पानी की सतह पर
 
और पानी की सतह पर
 
एक स्लेट तैर रही है
 
एक स्लेट तैर रही है
जिसपर लिखा है कखग।
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जिसपर लिखा है क ख ग।
  
  
(चार) - डूब गया एक गाँव हरसूद
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''' चार - डूब गया एक गाँव हरसूद '''
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एक बार फैली थी महामारी
 
एक बार फैली थी महामारी
देखते-देखते
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पूरा गाँव खाली हो गया था
 
पूरा गाँव खाली हो गया था
  
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बहुत भयानक भूकम्प
 
बहुत भयानक भूकम्प
 
धरती ऐसी काँपी थी कि
 
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नेस्तनाबूत हो गया था पूरा गाँव
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एक बार गाँव के बीचो-बीच
 
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फूट पड़ा था ज्वालामुखी
 
फूट पड़ा था ज्वालामुखी
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गाँव के बाग-बगीचे तक
 
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एक बार आया था प्रलय
 
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ऐसा महाप्रलय कि
 
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उसमें समा गया था पूरा गाँव
 
उसमें समा गया था पूरा गाँव
  
इस बार न फैली महामारी
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इसबार न फैली महामारी
न भूकम्प से थरथराई धरती
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न भूकम्प से थरथरायी धरती
 
न ज्वालामुखी से उमड़ा आग का दरिया
 
न ज्वालामुखी से उमड़ा आग का दरिया
न ही हुआ प्रलय का महाविनाशक तांडव
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न ही हुआ प्रलय का महाविनाशक ताण्डव
 
फिर भी डूब गया एक गाँव हरसूद
 
फिर भी डूब गया एक गाँव हरसूद
  
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(पाँच)- छूटी गीतों की डायरी, रंगोली के रंग
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पकिस्तान से विस्थापित होकर
 
पकिस्तान से विस्थापित होकर
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अपने देश में भी विस्थापित
 
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होता रहा बार-बार
 
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हर बार तोड़ी एक गृहस्थी
 
हर बार तोड़ी एक गृहस्थी
 
हर बार जोड़ी एक गृहस्थी
 
हर बार जोड़ी एक गृहस्थी
नई गृहस्थी हमेशा ही पुराने से
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कमतर ही रही
 
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अब फिर अस्सी वर्ष की उम्र में
 
अब फिर अस्सी वर्ष की उम्र में
उजड़ रहा हूँ हरसूद से
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अस्सी वर्ष की उम्र में
 
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उजड़ना बहुत आसान होता है
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मुझे सरकार ने दिया है
 
मुझे सरकार ने दिया है
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मैं आजकल रूपये
 
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ओढ़-बिछा रहा हूँ
 
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खूब चबा-चबाकर खा रहा हूँ  
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लेकिन कम्बख़्त भूख है कि मिटती नहीं
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नोटों के गद्दे पर वो नींद नहीं आती
 
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जो कर्ज़ में गले तक डूबे रहने के बाद भी
 
जो कर्ज़ में गले तक डूबे रहने के बाद भी
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डूबकर मरने के लिए
 
डूबकर मरने के लिए
  
मेरी सुहाग की चूड़ियाँ
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लोकगीतों की डायरी
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रंगोली के रंग
 
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चौक पूरने का सामान
 
चौक पूरने का सामान
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तुलसी का चौरा
 
तुलसी का चौरा
सखी-सहेलियाँ
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सखी -सहेलियाँ
 
सबकुछ छूट गया हरसूद में
 
सबकुछ छूट गया हरसूद में
 
हरसूद डूब गया
 
हरसूद डूब गया
  
और मैं डूबने से बच गयी
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अब मैं डूबने से बच गयी
 
या मैं भी डूब गयी
 
या मैं भी डूब गयी
 
हरसूद के साथ
 
हरसूद के साथ
 
कौन बताएगा मुझे
 
कौन बताएगा मुझे
  
मास्टर जी ने कहा था
+
मास्टरजी ने कहा था
 
विकास मनुष्य को बेहतर जीवन देता है
 
विकास मनुष्य को बेहतर जीवन देता है
 
विषय पर लेख लिखने के लिए
 
विषय पर लेख लिखने के लिए
 
मैंने बहुत अच्छा लेख लिखा है
 
मैंने बहुत अच्छा लेख लिखा है
  
लेकिन मेरी पाठशाला और मास्टर जी
+
लेकिन मेरी पाठशाला और मास्टरजी
दोनो छूट गए हरसूद में
+
दोनों छूट गए हरसूद में
अब मैं इस लेख का क्या करूँ
+
अब मैं क्या करूँ इस लेख का।
 
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विकास की क़ीमत इतनी ज़्यादा होती है
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तो क्या बुरा है अविकसित रहना ।
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19:01, 2 जनवरी 2016 के समय का अवतरण

डूबते हुए हरसूद पर पाँच कविताएं
 ( हरसूद म.प्र. का एक गाँव है, जहाँ के निवासियों को बाँध निर्माण के कारण विस्थापित कर दिया गया। )

एक – घर


जब भी कोई जाता
लम्बी यात्रा पर
घर उदास रहता
उसके लौटने तक

जब भी उठती घर से
बेटियों की डोली
वह घर की औरतों से
ज़्यादा विफरकर रोता

जब भी जन्मते घर में बच्चे
गर्व से फैलकर
अपने अन्दर ज़गह बनाता
उनके लिए भी
उत्सवों और सुअवसरों पर
इतना प्रसन्न होता कि
उसके साथ टोले-मुहल्ले भी
प्रसन्न हो जाते

इसी घर पर
आज बरस रहे हैं हथौड़े
वह मुँह भींचे पड़ा हुआ है
न आह, न कराह
चुपचाप भरभराते हुए
ढह रहा है घर

घर विस्थापित हो रहा है।




दो - छूटा हुआ जूता


सुनसान सडक़ पर छूटा हुआ है
एक पैर का जूता
उसे इन्तज़ार है
हमसफ़र पाँव का
जिसके साथ
टहलने जाना चाहता है
पान की दूक़ान तक

एक किनारे औंधा पड़ा हुक्का
सुगबुगा रहा है
कोई आकर उसे गुडग़ुड़ाए
तो वह फिर जी जाएगा
भर देगा रग-रग में तरंग

ठण्डा पड़ा चुल्हा
खेतों में खटकर लौटी भूख
को देखकर जल उठेगा
लपलपाते हुए

खूँटी पर टँगा हुआ बस्ता
अपने अन्दर की स्याही से
नीला पड़ रहा है
उसे लटकने के लिए
नाज़ुक कन्धा मिल जाए तो
उसे बना देगा कर्णधार

उजड़ती हुई खिड़कियों के झरोखों
और दरवाज़ों की ओट में पल्लवित प्रेम
विस्थापित हो रहा है
अभी भी मिल जाऐं आतुर निगाहें तो
वे फिर रच देंगे हीर-राँझां

नीम की छाँव में
धूप के चिलकों का आकार बढ़ता जा रहा है

खेतों के गर्भ में
बहुत सारी उर्वरा खदबदा रही है
 
आखिरी तारिख़ का ऐलान हो चुका है
एक दिन इन सब पर
फिर जाएगा पानी

इस पानी से बनेगी बिज़ली
जो दौड़ेगी
नगर-नगर, गाँव-गाँव
चारो तरफ विकास ही विकास होगा

एक दिन विकसित समाज में
कोई दबाएगा बिज़ली का खटका तो
उसकी बत्ती से रोशनी की जगह
विस्थापितों के जूते बरसेंगे
जो पुलिस के डंडे की डर
से छुट गए थे सड़क पर

कोई टेबल लैम्प ज़लाएगा
पढ़ने के लिए
उसके सामने फ़ैल जाएगी
बस्ते की स्याही
जो खूँटी पर टँगा छूट गया था

कोई कम्प्यूटर का खटका दबाएगा
तो उसके कम्प्युटर के स्क्रीन पर
उभरेगा मरणासन्न हुक्का
पूछेगा कहाँ गए वो लोग
जो मुझे गुडग़ुड़ाते थे


कोई हीटर का खटका दबाएगा
चाय बनाने के लिए
तो हीटर पर रखी केतली में
उन चूल्हों के ख़ूनभरे आँसू उबलेंगे
जिनकी आग पानी में डूब गयी

खेतों के गर्भ में खदबदाने के लिए
कुछ भी नहीं बचेगा
सड़ रही होंगी जड़ें

फिर दबाते रहिए बिज़ली के खटके
गाड़ते जाएं विकास के झण्डे
वहाँ कुछ नहीं बचेगा
जीवन जैसा ।

तीन - डूबता पीपल, तिरती स्लेट


बढ़ रहा है नदी में पानी
चढ़ रहा है गाँव पर

कसमसा रहे है खेत
वर्षों पैदा किया अनाज
अब जम जाएगी उन पर काई

या उनके अंदर बची हुई जड़ें
सडक़र बदबू फैलाएंगी
हो जाएगा जीना मुहाल
मर जाऐंगे खेत
चिल्ला रहे हैं
अरे आओ रे आओ
बचाओ कोई

आधा डूब चुका है बूढ़ा पीपल
और पानी चढ़ रहा है लगातार
वह डूबते हुए आदमी की तरह
अपनी टहनियों को ऊपर उठाए
चिल्ला रहा है
अरे आओ रे आओ
बचाओ कोई

अभी मेरे जि़म्में बहुत सारी मन्नतें हैं
जिनको पूरा करना है
अपनी छाया में खेलते-कूदते बच्चों को
जवान होते देखना है
बहुत सारे तीज-त्यौहारों में शामिल होना है

एक घर जो बचा रह गया था
सरकारी बुल्डोजरों और हथौड़ों से
न रो रहा है
न बचाव के लिए चिल्ला रहा है

खुद के आँसुओं से
गल रहीं हैं उसकी दीवारें

चढ़ रहा है नदी का पानी
घर जल समाधि लगा रहा है

देखते ही दखते डूब गया हरसूद
हाथियों नीचे पानी में
और पानी की सतह पर
एक स्लेट तैर रही है
जिसपर लिखा है क ख ग।


चार - डूब गया एक गाँव हरसूद


एक बार फैली थी महामारी
दखेते-देखते
पूरा गाँव खाली हो गया था

यहाँ तक कि जानवर भी नहीं बच पाए थे
महामारी के प्रकोप से

एक बार आया था
बहुत भयानक भूकम्प
धरती ऐसी काँपी थी कि
नेस्तनाबुत हो गया था पूरा गाँव


एक बार गाँव के बीचो-बीच
फूट पड़ा था ज्वालामुखी
जलकर राख हो गए थे
गाँव के बाग-बगीचे तक
 
एक बार आया था प्रलय
ऐसा महाप्रलय कि
उसमें समा गया था पूरा गाँव

इसबार न फैली महामारी
न भूकम्प से थरथरायी धरती
न ज्वालामुखी से उमड़ा आग का दरिया
न ही हुआ प्रलय का महाविनाशक ताण्डव
फिर भी डूब गया एक गाँव हरसूद

हरसूद डूब गया
अपनी सभ्यता-परम्परा और
जीवन की कलाओं के साथ।


पाँच - छूटी गीतों की डायरी, रंगोली के रंग


पकिस्तान से विस्थापित होकर
मैं आया था अपने देश में
अपने देश में भी विस्थापित
होता रहा बार-बार
हर बार तोड़ी एक गृहस्थी
हर बार जोड़ी एक गृहस्थी

नयी गृहस्थी हमेशा ही पुराने से
कमतर ही रही
अब फिर अस्सी वर्ष की उम्र में
उज़ड़ रहा हूँ हरसूद से
अस्सी वर्ष की उम्र में
उज़डऩा बहुत आसान होता है
बसना नामुमक़िन

मुझे सरकार ने दिया है
बहुत सारा मुवावज़ा

मैं आजकल रूपये
ओढ़-बिछा रहा हूँ
ख़ूब चबा-चबाकर खा रहा हूँ
सौ-सौ के नोट
लेकिन कम्बख़्त भूख़ है कि मिटती नहीं
नोटों के गद्दे पर वो नींद नहीं आती
जो कर्ज़ में गले तक डूबे रहने के बाद भी
अपनी झोपड़ी के ज़मीन पर आती थी
मैं हरसूद से विस्थापित हो गया
मेरा जीवन वहीं छूट गया
डूबकर मरने के लिए

मेरी सुहाग की चूडिय़ाँ
लोक गीतों की डायरी
रंगोली के रंग
चौक पूरने का सामान

तुलसी का चौरा
सखी -सहेलियाँ
सबकुछ छूट गया हरसूद में
हरसूद डूब गया

अब मैं डूबने से बच गयी
या मैं भी डूब गयी
हरसूद के साथ
कौन बताएगा मुझे

मास्टरजी ने कहा था
विकास मनुष्य को बेहतर जीवन देता है
विषय पर लेख लिखने के लिए
मैंने बहुत अच्छा लेख लिखा है

लेकिन मेरी पाठशाला और मास्टरजी
दोनों छूट गए हरसूद में
अब मैं क्या करूँ इस लेख का।