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"भीड़ / रमेश भोजक ‘समीर’" के अवतरणों में अंतर

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<poem>कूड़ है, सरासर कूड़
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कूड़ है, सरासर कूड़
 
थूं कूड़ो है
 
थूं कूड़ो है
 
सदा करै कूड़ी बातां
 
सदा करै कूड़ी बातां

20:34, 15 जनवरी 2016 के समय का अवतरण

कूड़ है, सरासर कूड़
थूं कूड़ो है
सदा करै कूड़ी बातां
ऊभो भीड़ मांय
अर करै दावो
निरवाळै सोच रो
थनैं ठाह तो है
कै जिका भेळा होवै
भीड़ भेळै
वै कीं नीं सोचै
अर जिका कीं सोचै
वै कद बणै
हिस्सो भीड़ रो?