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हिज्जे
मक़सूद= मनोरथ<br>
वां वाँ दिल में कि सदमे दो या जी में के सब सह लो<br>
उन का भी अजब दिल है मेरा भी अजब जी है<br><br>
हर ज़र्रा चमकता है अंवारअँवार-ए-इलाही से<br>हर सांस साँस ये कहती हम हैं तो ख़ुदा भी है<br><br>
अंवारअँवार-ए-इलाही= दैवी प्रकाश<br>
सूरज में लगे धब्बा, फ़ितरत के करिश्मे हैं<br>
बुत हम को कहे काफ़िर, अल्लाह की मऱ्जी मर्ज़ी है <br><br>
फ़ितरत= प्राकृतिप्रकृति
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