भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आव कविता बांच / मनोज पुरोहित ‘अनंत’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोज पुरोहित ‘अनंत’ |संग्रह= मंड...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

21:47, 23 जनवरी 2016 के समय का अवतरण

होठां सूं निकळ
कानां तांई पूगी
कानां रै बाद
कठै गमगी कविता!

निरा सबद नीं है
म्हारी कविता
भीतर री लाय है
बळत है बरसां री
हाय है
मजूरां री-करसां री।
 
सोनल सुपना
रमै सबदां में
सबद उचारै राग
सुळगावै आग
जद रचीजै-कथीजै
कोई कविता
 
आव कविता बांच
मिलसी वा ई आंच ।