भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हंगामा है क्यूँ बरपा / अकबर इलाहाबादी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(हिज्जे)
(थोड़ी वर्तनी ठी की है।)
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है<br><br>
 
डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है<br><br>
  
ना-तर्जुबाकारी से वाइज़ की ये बातें हैं<br>
+
ना-तजुर्बाकारी से वाइज़ की ये बातें हैं<br>
 
इस रंग को क्या जाने, पूछो तो कभी पी है<br><br>
 
इस रंग को क्या जाने, पूछो तो कभी पी है<br><br>
  
 
वाइज़= धर्मोपदेशक<br>
 
वाइज़= धर्मोपदेशक<br>
  
उस मै से नहीं मतलब दिल जिस से है बेगाना<br>
+
उस मय से नहीं मतलब दिल जिस से है बेगाना<br>
 
मक़सूद है उस मै से, दिल ही में जो खिंचती है<br><br>
 
मक़सूद है उस मै से, दिल ही में जो खिंचती है<br><br>
  
पंक्ति 20: पंक्ति 20:
 
उन का भी अजब दिल है मेरा भी अजब जी है<br><br>
 
उन का भी अजब दिल है मेरा भी अजब जी है<br><br>
  
हर ज़र्रा चमकता है अँवार-ए-इलाही से<br>
+
हर ज़र्रा चमकता है अनवार-ए-इलाही से<br>
 
हर साँस ये कहती हम हैं तो ख़ुदा भी है<br><br>
 
हर साँस ये कहती हम हैं तो ख़ुदा भी है<br><br>
  
अँवार-ए-इलाही= दैवी प्रकाश<br>
+
अनवार-ए-इलाही= दैवी प्रकाश<br>
  
 
सूरज में लगे धब्बा, फ़ितरत के करिश्मे हैं<br>
 
सूरज में लगे धब्बा, फ़ितरत के करिश्मे हैं<br>

14:09, 10 मई 2008 का अवतरण

हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है

ना-तजुर्बाकारी से वाइज़ की ये बातें हैं
इस रंग को क्या जाने, पूछो तो कभी पी है

वाइज़= धर्मोपदेशक

उस मय से नहीं मतलब दिल जिस से है बेगाना
मक़सूद है उस मै से, दिल ही में जो खिंचती है

मक़सूद= मनोरथ

वाँ दिल में कि सदमे दो या जी में के सब सह लो
उन का भी अजब दिल है मेरा भी अजब जी है

हर ज़र्रा चमकता है अनवार-ए-इलाही से
हर साँस ये कहती हम हैं तो ख़ुदा भी है

अनवार-ए-इलाही= दैवी प्रकाश

सूरज में लगे धब्बा, फ़ितरत के करिश्मे हैं
बुत हम को कहे काफ़िर, अल्लाह की मर्ज़ी है

फ़ितरत= प्रकृति