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"सांकळ-दोय / हरि शंकर आचार्य" के अवतरणों में अंतर
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तोड़ न्हांखो वा सांकळ
जकी बदळै थांनैं
एक जींवती लास मांय
अर भरै बसका
काळजै रो खुणो-खुणो
बळती आतमां रै बिचाळै
कोनी उठै धुंवो ई।