भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अपने तड़पने की / मीर तक़ी 'मीर'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मीर तक़ी 'मीर' }} अपने तड़पने की मैं तदबीर पहले कर लूँ<br> त...)
(कोई अंतर नहीं)

07:46, 18 फ़रवरी 2008 का अवतरण

अपने तड़पने की मैं तदबीर पहले कर लूँ
तब फ़िक्र मैं करूँगा ज़ख़्मों को भी रफू का

यह एैश के नहीं हैं याँ रंग और कुछ है
हर गुल है इस चमन में साग़र भरा लहू का

बुलबुल ग़ज़ल सराई, आगे हमारे मत कर
सब हमसे सीखते हैं, अंदाज़ गुफ़्तगू का