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"दिल मेरा जिस से बहलता / अकबर इलाहाबादी" के अवतरणों में अंतर
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सय्यद उठे तो गज़ट ले के तो लाखों लाए<br> | सय्यद उठे तो गज़ट ले के तो लाखों लाए<br> |
16:07, 29 अप्रैल 2008 का अवतरण
दिल मेरा जिस से बहलता कोई ऐसा न मिला
बुत के बंदे तो मिले अल्लाह का बंदा न मिला
बज़्म-ए-याराँ से फिरी बाद-ए-बहारी मायूस
एक सर भी उसे आमादा-ए-सौदा न मिला
बज़्म-ए-याराँ=मित्रसभा; बाद-ए-बहारी=वासन्ती हवा; मायूस=निराश; आमादा-ए-सौदा=पागल होने को तैयार
गुल के ख्व़ाहाँ तो नज़र आए बहुत इत्रफ़रोश
तालिब-ए-ज़मज़म-ए-बुलबुल-ए-शैदा न मिला
ख्व़ाहाँ=चाहने वाले; इत्रफ़रोश=इत्र बेचने वाले;
तालिब-ए-ज़मज़म-ए-बुलबुल-ए-शैदा=फूलों पर न्योछावर होने वाली बुलबुल के नग्मों का इच्छुक
वाह क्या राह दिखाई हमें मुर्शाद ने
कर दिया काबे को गुम और कलीसा न मिला
मुर्शाद=गुस्र; कलीसा=चर्च,गिरजाघर
सय्यद उठे तो गज़ट ले के तो लाखों लाए
शैख़ क़ुरान दिखाता फिरा पैसा न मिला
गज़ट=समाचार पत्र