भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"निरवाही / प्रेमघन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमघन |संग्रह=जीर्ण जनपद / बदरी...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(कोई अंतर नहीं)

12:03, 30 जनवरी 2016 का अवतरण

होत निरौनी जबै धान के खेतन माहीं।
अवलि निम्न जातिय जुबति जन जुरि जहँ जाहीं॥
खेतन में जल भरयो शस्य उठि ऊपर लहरत।
चारहुँ ओरन हरियारी ही की छबि छहरत॥
भोरी भारी ग्राम बधू इक संग मिलि गावति।
इक सुर में रसभरी गीत झनकार मचावति॥
कहँ नागरी नवेली ए तीखे सुर पावैं।
रंग भूमि को “कोरस” सोरस कब बरसावैं॥
किती युवति तिन मैं अति रूप सलोनो पाए।
किए कज्जलित नैन सीस सिन्दूर सुहाए॥
धान खेत मैं बैठी चंचल चखनि नचावति।
बन मैं भटकी चकित मृगी सी छबि दरसावति॥
किते गाँव के छैल लटू ह्वै जिनहिं निहारैं।
तिनकी ताकनि मुसकुरानि लखि तन मन वारैं॥
तुच्छ बसन भूषन संग सोभा घनी लखावैं।
मनहुँ “लाल चीथड़ा बीच” सच मसल बनावैं॥
और लखावैं मनहुँ ईस को सम दरसी पन।
दियो रूप सम जिन ऊँचे अरु नीचन बीचन॥