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उत्तर-वासन्ती दिन / अज्ञेय

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चौंक कर खिले,
पंछियों की बोली है ठिठकी-सी,
पंछियों की बोली है ठिठकीहम साझा भोग सके होते—तू-सीमैं—
हम साझा भोग सके होते--तू-मैं-- तो भी मैं इसे समूचा तुझ को भेंट चुका होता :
(चौंका, ठिठका मैं)
उतना ही सहज, कदाचित् तेरे उतना ही ही अनजाने भी ।भी।
ले, दिया गया यह :
एक छोड़ उस लौ को जो
एकान्त मुझे झुलसाती है ।है।
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