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"झूठ बोलेगा तो ये आलम तेरा हो जायेगा / गौतम राजरिशी" के अवतरणों में अंतर

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(कृति ओर अप्रैल-सितम्बर 2011, त्रैमासिक सरस्वती सुमन जनवरी-मार्च 2011)

13:02, 7 फ़रवरी 2016 के समय का अवतरण

झूठ बोलेगा तो ये आलम तेरा हो जायेगा
गर कहेगा सच यहाँ तो हादसा हो जायेगा

भेद की ये बात है, यूँ उठ गया पर्दा अगर
तो सरे-बाज़ार कोई माजरा हो जायेगा

इक ज़रा जो राय दें हम तो बनें गुस्ताख़-दिल
वो अगर दें धमकियाँ भी, मशवरा हो जायेगा

है नियम बाज़ार का ये जो न बदलेगा कभी
वो है सोना जो कसौटी पर खरा हो जायेगा

भीड़ में यूं भीड़ बनकर गर चलेगा उम्र भर
बढ़ न पायेगा कभी तू, गुमशुदा हो जायेगा

सोचना क्या ये तो तेरे जेब की सरकार है
जो भी चाहे, जो भी तू ने कह दिया,हो जायेगा

तेरी आँखों में छुपा है दर्द का सैलाब जो
एक दिन ये इस जहाँ का तज़किरा हो जायेगा





(कृति ओर अप्रैल-सितम्बर 2011, त्रैमासिक सरस्वती सुमन जनवरी-मार्च 2011)