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"उठ जाग मुसाफिर भोर भई / भजन" के अवतरणों में अंतर
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उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अब रैन कहाँ जो तू सोवत है | उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अब रैन कहाँ जो तू सोवत है | ||
23:30, 25 मार्च 2008 का अवतरण
♦ रचनाकार: अज्ञात
('कविता कोश' में 'संगीत'(सम्पादक-काका हाथरसी) नामक पत्रिका के जुलाई 1945 के अंक से)
उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अब रैन कहाँ जो तू सोवत है
जो जागत है सो पावत है, जो सोवत है वो खोवत है
खोल नींद से अँखियाँ जरा और अपने प्रभु से ध्यान लगा
यह प्रीति करन की रीती नहीं प्रभु जागत है तू सोवत है.... उठ ...
जो कल करना है आज करले जो आज करना है अब करले
जब चिडियों ने खेत चुग लिया फिर पछताये क्या होवत है... उठ ...
नादान भुगत करनी अपनी ऐ पापी पाप में चैन कहाँ
जब पाप की गठरी शीश धरी फिर शीश पकड़ क्यों रोवत है... उठ ....