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"हुई राह मुश्किल तो क्या कर चले / गौतम राजरिशी" के अवतरणों में अंतर

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{द्विमासिक सुख़नवर, जुलाई-अगस्त 2010}
 
{द्विमासिक सुख़नवर, जुलाई-अगस्त 2010}
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19:56, 10 फ़रवरी 2016 के समय का अवतरण

हुई राह मुश्किल तो क्या कर चले
क़दम-दर-क़दम हौसला कर चले

उबरते रहे हादसों से सदा
गिरे, फिर उठे, मुस्कुरा कर चले

लिखा ज़िंदगी पर फ़साना कभी
कभी मौत पर गुनगुना कर चले

खड़ा हूँ हमेशा से बन कर रदीफ़
वो ख़ुद को मगर काफ़िया कर चले

उन्हें रूठने की है आदत पड़ी
हमारी भी जिद थी, मना कर चले

बनाया, सजाया, सँवारा जिन्हें
वही लोग हमको मिटा कर चले

जो कमबख़्त होता था अपना कभी
उसी दिल को हम आपका कर चले

{द्विमासिक सुख़नवर, जुलाई-अगस्त 2010}