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"हमारे हौसलों को ठीक से जब जान लेते हैं / गौतम राजरिशी" के अवतरणों में अंतर
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|रचनाकार=गौतम राजरिशी | |रचनाकार=गौतम राजरिशी | ||
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हमारे हौसलों को ठीक से जब जान लेते हैं | हमारे हौसलों को ठीक से जब जान लेते हैं | ||
− | अलग ही रास्ते फिर | + | अलग ही रास्ते फिर आँधी औ' तूफ़ान लेते हैं |
बहुत है नाज़ रुतबे पर उन्हें अपने, चलो माना | बहुत है नाज़ रुतबे पर उन्हें अपने, चलो माना | ||
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है ढलती शाम जब,तो पूछता है दिन थका-माँदा | है ढलती शाम जब,तो पूछता है दिन थका-माँदा | ||
− | सितारे डूबते सूरज से क्या सामान लेते हैं?" | + | "सितारे डूबते सूरज से क्या सामान लेते हैं ?" |
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+ | (समावर्तन, जुलाई 2014 "रेखांकित" , लफ़्ज़ सितम्बर-नवम्बर 2011) |
19:41, 14 फ़रवरी 2016 के समय का अवतरण
हमारे हौसलों को ठीक से जब जान लेते हैं
अलग ही रास्ते फिर आँधी औ' तूफ़ान लेते हैं
बहुत है नाज़ रुतबे पर उन्हें अपने, चलो माना
कहाँ हम भी किसी मग़रूर का अहसान लेते हैं
हुआ बेटा बड़ा हाक़िम, भला उसको बताना क्या
कि करवट बाप के सीने में कुछ अरमान लेते हैं
हो बीती उम्र शोलों पर ही चलते-दौड़ते जिनकी
क़दम उनके कहाँ कब रास्ते आसान लेते हैं
इशारा वो करें बेशक उधर हल्का-सा भी कोई
इधर हम तो ख़ुदाया का समझ फ़रमान लेते हैं
है ढलती शाम जब,तो पूछता है दिन थका-माँदा
"सितारे डूबते सूरज से क्या सामान लेते हैं ?"
(समावर्तन, जुलाई 2014 "रेखांकित" , लफ़्ज़ सितम्बर-नवम्बर 2011)