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नन्ही-सी परी
नन्ही-सी परी
गुलाब पाँखुरी-सी
आई जमीं पे
झूम उठा आँगन।
महकी हँसी,
रोशन होने लगा
बुझा सा मन,
भर गई फिर से
सूनी वो गोद
प्यारी -सी वो मुस्कान
हरने लगी
मन का सूनापन।
लगने लगा
प्यारा अब जीवन,
फिर से जागीं
सोई वो तमन्नाएँ,
झूमने लगा
नन्हें से हाथों संग
बन मयूर
झुलसा हुआ मन।
दिखने लगीं
दबी संवेदनाएँ,
खिलने लगीं
मेरे भी लबों पर
रंग-बिरंगी
कलियों -सी कोमल,
हवा-सी नर्म,
पानी -जैसी तरल,
रात रानी की
ख़ुशबू से नहाई,
नए छंदों से
सुरों को सजाती -सी ,
प्यारी-प्यारी लोरियाँ।
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