"जब से मैं क़ैद हूँ / नाज़िम हिक़मत" के अवतरणों में अंतर
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सात साल की सज़ा काट कर बाहर निकला वह | सात साल की सज़ा काट कर बाहर निकला वह | ||
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कुछ दिन घूमता रहा वह बाहर | कुछ दिन घूमता रहा वह बाहर | ||
फिर तस्करी के जुर्म में गिरफ़्तार हुआ। | फिर तस्करी के जुर्म में गिरफ़्तार हुआ। | ||
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वे बच्चे जो अपनी माँ की कोख से जन्मे उस साल | वे बच्चे जो अपनी माँ की कोख से जन्मे उस साल | ||
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अब चौड़े पुट्ठे वाले घोड़ों में तब्दील हो चुके हैं। | अब चौड़े पुट्ठे वाले घोड़ों में तब्दील हो चुके हैं। | ||
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रोटी बिलकुल सफ़ेद हुआ करती थी, कपास की तरह, | रोटी बिलकुल सफ़ेद हुआ करती थी, कपास की तरह, | ||
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बाद में राशन बंध गया, | बाद में राशन बंध गया, | ||
और यहाँ, इस दीवार के भीतर हम एक-दूसरे को पीटते थे | और यहाँ, इस दीवार के भीतर हम एक-दूसरे को पीटते थे |
14:59, 23 अप्रैल 2016 के समय का अवतरण
जब से मैं क़ैद हूँ
दुनिया दस बार घूम चुकी है सूरज के इर्द-गिर्द
और जब तुम धरती से पूछो, वह कहेगी —
ये कोई दर्ज करनेवाली बात नहीं,
बहुत ही छोटा अरसा गुज़रा है अभी तक।
और तुम मुझसे पूछो, मैं कहूँगा —
मेरी ज़िन्दगी के दस साल।
मेरे पास एक पेन्सिल थी
जिस साल मैं क़ैदख़ाने में आया.
घिस गई एक ही हफ़्ते में वह लिखते-लिखते.
और अगर तुम पूछो उस पेन्सिल से, वो कहेगी —
एक पूरी ज़िन्दगी।
और मुझसे पूछो तो कहूँगा —
कुछ नहीं, महज एक हफ़्ता।
उस्मान को क़त्ल के जुर्म में क़ैद किया गया था
सात साल की सज़ा काट कर बाहर निकला वह
उस रोज़ जब मैं क़ैदख़ाने में आया.
कुछ दिन घूमता रहा वह बाहर
फिर तस्करी के जुर्म में गिरफ़्तार हुआ।
छह महीने की सज़ा काट कर वह फिर बाहर निकला.
और कल ही एक ख़त मिला मुझे कि उसने शादी कर ली
और बहार के मौसम में जनमेगा उसका बच्चा।
अब दस साल के हैं
वे बच्चे जो अपनी माँ की कोख से जन्मे उस साल
जब मैं इस क़ैदख़ाने में आया था,
और उस साल जन्मे, दुबले पैरों पर लड़खड़ाते बछेड़े
अब चौड़े पुट्ठे वाले घोड़ों में तब्दील हो चुके हैं।
मगर जैतून के पौधे आज भी पौधे ही हैं
और आज भी वे बच्चे ही हैं.
यहाँ से दूर हमारे शहर में खुल गए हैं नए चौक-बाज़ार
जब से मैं क़ैद हूँ।
और हमारा परिवार रहता है
उस घर में जिसे हमने कभी देखा नहीं
उस गली में जिसे मैं नहीं जानता।
रोटी बिलकुल सफ़ेद हुआ करती थी, कपास की तरह,
जिस साल मैं क़ैदख़ाने में आया।
बाद में राशन बंध गया,
और यहाँ, इस दीवार के भीतर हम एक-दूसरे को पीटते थे
मुट्ठी भर काली पपड़ी के टुकड़े के लिए।
अब दुबारा इस पर पाबन्दी नहीं
मगर भूरा और बेस्वाद.
नाजियों के दचाऊ कैमो का तन्दूर अभी नहीं सुलगा था,
एटम बम अभी नहीं गिराया गया था हिरोशिमा पर।
किसी बच्चे की कटी गर्दन से बहते लहू की मानिन्द
गुज़रता रहा वक़्त।
फिर ख़त्म किया गया बाजाप्ता वह दौर आगे चलकर
अमरीकी डालर अब बातें करते हैं तीसरे आलमी जंग की।
लेकिन सब के बावजूद, रोशन हुए हैं दिन
जब से मैं क़ैदख़ाने में हूँ,
और उनमें से आधे दिन
अपना मजबूत हाथ रखते देते हैं पत्थर के फर्श
और अँधेरे के छोर पर
सीधे आकर।
जब से मैं क़ैदख़ाने में हूँ
दुनिया दस बार घूम चुकी है सूरज के इर्द-गिर्द
और एक बार फिर दुहराता हूँ मैं उसी जज्बे के साथ
ज़िनके बारे में लिखा था मैंने
उस साल जब मैं क़ैदख़ाने में आया था —
‘वे
जिनकी तादाद उतनी ही ज़्यादा है
जितनी ज़मीन पर चींटियाँ
पानी में मछलियाँ
आसमान में परिन्दे।
वे ख़ौफज़दा और बहादुर हैं
जाहिल और जानकार हैं
और वे बच्चे हैं,
और वे ही
जो तबाह करना और बनाना जानते हैं
इन गीतों में उन्हीं के जोखिम भरे कारनामे हैं.’
और बाकी सभी बातें,
मसलन, मेरा दस साल यहाँ पड़े रहना
कुछ भी नहीं।
अंग्रेज़ी से अनुवाद : दिगम्बर