भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"म्हां रै ऊपर पग धर चढग्या / मंगत बादल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKCatGeet}} {{KKRachna |रचनाकार=मंगत बादल |संग्रह= }} {{KKCatRajasthaniRachna...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 13: | पंक्ति 13: | ||
म्हे निसरणी रा गाता । | म्हे निसरणी रा गाता । | ||
− | + | बां रो सगळो बोझ, | |
म्हे ई सहियो। | म्हे ई सहियो। | ||
म्हे सुणता रैया, | म्हे सुणता रैया, |
18:01, 30 अप्रैल 2016 का अवतरण
म्हां रै ऊपर पग धर चढग्या,
लोगऊपराळी मजलां पर,
म्हे निसरणी रा गाता ।
बां रो सगळो बोझ,
म्हे ई सहियो।
म्हे सुणता रैया,
बां जिको कीं कहियो ।
म्हे चिप्या रैया अेक जगा
आप रै करम सूं या भरम सूं,
बां रा चरण,
कंवळ बण भरता रैया,
म्हां री जिनगाणी रा खाता ।
म्हे निसरणी रा गाता ।
ईसा नीं बण सक्या पण,
म्हे भी मेखां सूं ठुक्या ।
देखण नै दुख-सुख म्हां रा
कोई नीं रुक्या ।
रोंवता रैया किस्मत नै,
जोंवता रैया बाटड़ली
म्हे निहाल हुया,
जद बां दरस दिया आता-जाता ।
म्हे निसरणी रा गाता ।