भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जिसके मुँह मे ज़बान रखी है / चाँद शुक्ला हादियाबादी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('.{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चाँद हादियाबादी }} Category:गज़ल <poem> ज...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
21:39, 7 मई 2016 के समय का अवतरण
.
जिसने मुँह मे ज़बान रखी है
उसने अपनी ही ठान रखी है
यह तो जाएगी जाते-जाते ही
क्यों हथेली पे जान रखी है
साथ जिसने दिया है हर पल-छिन
उसने ही आन-बान रखी है
रोज़ मरतें हैं रोज़ जीते हैं
रौनके-दो जहान रखी है
ऐ फ़लक तू खुला है ख़ाली है
चाँद तारों ने शान रखी है