भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तेरी आँखों का ये दर्पन अच्छा लगता है / चाँद शुक्ला हादियाबादी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चाँद हादियाबादी }} Category:गज़ल <poem> त...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
21:45, 7 मई 2016 के समय का अवतरण
तेरी आँखों का ये दर्पन अच्छा लगता है
इसमें चेहरे का अपनापन अच्छा लगता है
तुन्द हवाओं तूफ़ानों से दिल घबराता है
हल्की बारिश का भीगापन अच्छा लगता है
वैसे तो हर सूरत की अपनी ही सीरत है
हमको तो बस तेरा भोलापन अच्छा लगता है
हमने इक-दूजे को बाँधा प्यार की डोरी से
सच्चे धागों का ये बंधन अच्छा लगता है
कड़वे बोल ही बोलें ना फीका सुन पायें
हमको ये गूँगा बहरापन अच्छा लगता है
दाग़ नहीं है माथे पे रहमत का साया है
'चांद’ के चेहरे पे ये चन्दन अच्छा लगता है