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"तेरा हाथ मेरे काँधे / बशीर बद्र" के अवतरणों में अंतर
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याद नगर में एक महल था, वो भी गिरता जाता है। | याद नगर में एक महल था, वो भी गिरता जाता है। | ||
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00:25, 15 मई 2008 का अवतरण
तेरा हाथ मेरे काँधे पे दर्या बहता जाता है
कितनी खामोशी से दुख का मौसम गुजरा जाता है।
नीम पे अटके चाँद की पलकें शबनम से भर जाती हैं,
सूने घर में रात गये जब कोई आता-जाता है।
पहले ईँट, फिर दरवाजे, अब के छत की बारी है
याद नगर में एक महल था, वो भी गिरता जाता है।