भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

याद / रति सक्सेना

14 bytes added, 17:54, 19 मई 2008
कोई सूराख ना रहा जिसे<br>
बन्द ना किया गया <br>फिर भी न जाने कब और कैसे<br>
याद से घर भर गया<br><br>
दूसरी ने तिनकों पर<br>
सजा दिए तिनके<br>
घौंसला घोंसला चहचहा उठा<br><br>
'''याद-3<br><br>
मानसून का रुख रुख़ बदला<br>
हवा सूख कर चिमट गई<br>
थम गईं साँसे<br>
बादल टकरा उठे फैंफड़ों फेफड़ों से<br><br>
फरफराती कुछ बून्देबूंदें<br>
नाचती पत्तियों पे<br>
बरसात क्या आई<br>
यादें बरस गईं
Anonymous user