भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"एक दिया चलता है आगे / कृष्ण मुरारी पहरिया" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कृष्ण मुरारी पहरिया |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 11: पंक्ति 11:
 
आगे अपने ज्योति बिछाता
 
आगे अपने ज्योति बिछाता
 
पीछे से मैं चला आ रहा
 
पीछे से मैं चला आ रहा
कम्पित दुर्बल पाँव बढाता
+
कम्पित दुर्बल पाँव बढ़ाता
  
 
दिया जरा-सा, बाती ऊँची
 
दिया जरा-सा, बाती ऊँची

01:05, 16 मई 2016 के समय का अवतरण

एक दिया चलता है आगे -
आगे अपने ज्योति बिछाता
पीछे से मैं चला आ रहा
कम्पित दुर्बल पाँव बढ़ाता

दिया जरा-सा, बाती ऊँची
डूबी हुई नेह में पूरी
इसके ही बल पर करनी है
पार समय की लम्बी दूरी

दिया चल रहा पूरे निर्जन
पर मंगल किरणें बिखराता

तम में डूबे वृक्ष-लताएँ
नर भक्षी पशु उनके पीछे
यों तो प्राण सहेजे साहस
किन्तु छिपा भय उसके नीचे

ज्योति कह रही, चले चलो अब
देखो वह प्रभात है आता