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"कृष्ण सुदामा चरित्र / शिवदीन राम जोशी / पृष्ठ 1" के अवतरणों में अंतर

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सकल सृष्टि पूजन करे तुमरी सदा गणेश ||
 
सकल सृष्टि पूजन करे तुमरी सदा गणेश ||
 
नमन करत हूँ शारदा सकल गुणन की खान |
 
नमन करत हूँ शारदा सकल गुणन की खान |
नमहूँ सुकवि पुनि देव सब चरन कमल को ध्यान |
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नमहूँ सुकवि पुनि देव सब चरन कमल को ध्यान ||
प्रभु चरित्र आनन्द अति रुचिकर करहूँ बखान ||
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प्रभु चरित्र आनन्द अति रुचिकर करहूँ बखान |
 
जाही सुने चित देय नर पावत पद निर्वाण ||
 
जाही सुने चित देय नर पावत पद निर्वाण ||
  
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               इसलिए नहीं धनवान किया,  
 
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सात्विक  भाव  ही रहा सदा,  
 
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           प्रिय दिल में कब अरमान किया |  
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केते ही प्रवीण  फँसे माया  के दल-दल में ,
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स्त्री और बाल बच्चे धाम धान संवार राखे ,
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            एते  नष्ट  होते  कष्ट  दिल  में  उठता  है |
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ऐसी यह माया, तासे बिगर जात काया,
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                  लाखों भरमाया ऐसा झूंठ व्यर्थ नाता है |
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कहता सुदामा प्रिय राम-कृष्ण राम भजो,
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          आनन्द ले सच्चा विप्र जो गोविन्द गुण गाता है |
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अपना ना  कोई प्रिया सुन री दे ध्यान चित्त,
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                  संसार ये असार तामे झूठा ही नाता है |
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स्वार्थ के मीत देख ना माने , कर प्रीत देख,
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                  ऐसे सब मात-तात जात व्यर्थ भ्राता है |
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सुत और दारा देख  प्यारा से भी प्यारा देख,
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                सारा ही पसारा देख द्वन्द सा दिखता है |
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कहता सुदामा तन धन अरु धाम झूठा ,
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              सच्चा तो वाही विप्र  गोविन्द गुण गाता है |
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बेर-बेर समझाव हूँ, आवत नहीं  यकीन |
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माया में फँस-फँस मरे , केते चतुर प्रवीण ||
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         '''सुदामा- द्वारपाल से'''
 
         '''सुदामा- द्वारपाल से'''

05:50, 16 मई 2016 का अवतरण


               वन्दना

बन्दहुँ राम जो पूरण ब्रह्म है, वे ही त्रिलोकी के ईश कहावें |
श्रीगुरु ! राह कृपामय हो, हम पे नज़रें गुण को नित गावें ||
शारद शेष महेश नमो, बलिहारी गणेश हमेश मनावें |
बुद्धि प्रकाश करो घट भीतर, कृष्ण-सुदामा चरित्र बनावें | |

राम-राम जप बावरे साधन यही विवेक |
इस साधन की ओट से तर गए भक्त अनेक ||
परम सनेही राम प्रिय सुप्रिय गुरु महाराज |
चरन परहुँ कर जोर कर वन्दहुँ संत समाज ||
प्रभु चरित्र में चित्त रचे जन्म जन्म यहि काम |
भक्ति सदा सतसंग उर कृपा करहुँ श्रीराम ||
बंदहूँ शंकर-सुत हरखि मंगल मयी महेश |
सकल सृष्टि पूजन करे तुमरी सदा गणेश ||
नमन करत हूँ शारदा सकल गुणन की खान |
नमहूँ सुकवि पुनि देव सब चरन कमल को ध्यान ||
प्रभु चरित्र आनन्द अति रुचिकर करहूँ बखान |
जाही सुने चित देय नर पावत पद निर्वाण ||

लिखूं सुदामा की कथा यथा बुद्धि है मोर |
करहूँ कृपा शिवदीन पर नगर नन्द किशोर ||

 
       परिचय और स्थिति

भक्त सुदामा ब्रह्मण थे,
                   रहते थे देश विदर्भ नगर,
मीत प्रभु के सच्चे थे,
                 पत्नि भी पतिव्रता थी घर |
कुछ किस्सा उनका बयां करू,
                छांया दारिद्र की घर पर थी,
वो भगवत रूप परायण थे,
                 आशा उन्हीं पर निर्भर थी |
थी बुद्धिमती पतिव्रता वाम,
                गुणवान चतुर सुन्दर नारी,
पति इच्छा अनुकूल चले,
            थी श्रीपति को अतिशय प्यारी |
वो दुःख सुख सभी भोगती थी,
               पर बात न जिह्वा पर आती,
नित मीठे बैन बोलती थी,
            नहीं ध्यान बुरा दिल पर लाती |

       पति -पत्नी वार्ता

इक रोज कहा कर जोर दोऊ,
             पति भूख से प्राण निकलते हैं,
छोटे-छोटे छौना मोरे,
            बिन अन जल के कर मलते हैं |
यह दशा देख अकुलाय रही,
                  नहीं बच्चों को भी रोटी है,
रह सकते नहीं प्राण इनके,
                अति कोमल है, वे छोटी हैं |
इसलिए कृपा कर प्राणनाथ,
             तुम नमन करो अविनाशी को,
मत करो देर, बस जाय कहो,
              सब हाल द्वारिका वासी को |
वह सखा आपके प्रेमी हैं,
                   देखत ही सनमान करें,
सब दूर व्यथा हो जावेगी,
              कर कृपा तुम्हे धनवान करें |
बतियाँ पत्नि की सुनी ब्राह्मण,
                भयभीत हुआ घबराय गया,
बोल व्यथा के सुन श्रवणा,
               चुप चाप रहा बोला न गया |
कुछ देर बाद समझाने को,
                बोला तू सच तो कहती है,
मगर हुआ क्या आज प्रिये,
                 हर रोज हरष से रहती है |
ये अश्रु बिंदु किसलिए आज,
               दुखमयी बात क्यों बोल रही,
क्यों तुली कोटि पर माया की,
             शुभ सुखद ज्ञान को तोल रही |
हैं कृष्ण सखा मेरे प्रेमी,
                  धन लाने को कैसे जाऊं,
निष्काम भक्ति की अब तक तो,
            किस भांति स्वार्थ अब अपनाऊँ |
है दूर द्वारिका पास नहीं,
                  मैं वृद्ध हुआ अकुलाता हूँ,
मग चलने की सामर्थ्य नहीं,
                 इसलिए तुझे समझाता हूँ |
है दया देव की अपने पर,
               इसलिए नहीं धनवान किया,
सात्विक भाव ही रहा सदा,
           प्रिय दिल में कब अरमान किया |

केते ही प्रवीण फँसे माया के दल-दल में ,
                   ऐसा है विचित्र जाल भेद हूँ न पता है |
स्त्री और बाल बच्चे धाम धान संवार राखे ,
             एते नष्ट होते कष्ट दिल में उठता है |
ऐसी यह माया, तासे बिगर जात काया,
                  लाखों भरमाया ऐसा झूंठ व्यर्थ नाता है |
कहता सुदामा प्रिय राम-कृष्ण राम भजो,
           आनन्द ले सच्चा विप्र जो गोविन्द गुण गाता है |
अपना ना कोई प्रिया सुन री दे ध्यान चित्त,
                   संसार ये असार तामे झूठा ही नाता है |
स्वार्थ के मीत देख ना माने , कर प्रीत देख,
                   ऐसे सब मात-तात जात व्यर्थ भ्राता है |
सुत और दारा देख प्यारा से भी प्यारा देख,
                 सारा ही पसारा देख द्वन्द सा दिखता है |
कहता सुदामा तन धन अरु धाम झूठा ,
               सच्चा तो वाही विप्र गोविन्द गुण गाता है |

बेर-बेर समझाव हूँ, आवत नहीं यकीन |
माया में फँस-फँस मरे , केते चतुर प्रवीण ||
  
      
         सुदामा- द्वारपाल से

महाराज कृष्ण क्या करते है, है उनसे काम मेरा भाई।
हम बचपन के सखा मित्र, वह होते परम गुरू भाई।।
जाकर के उनसे खबर करो, यह हाल बता देना सारा।
मैं ब्राह्मण द्रविड़ देश का हूं, दिल ख्याल करा देना सारा।।

         द्वारपाल- कृष्ण से

जा करके द्वारपाल ने जब श्रीकृष्ण चन्द्र से हाल कहा।
इक दुर्बल ब्राह्मण खड़ा खड़ा कहता है श्री गोपाल कहां।
चाहता है प्रभु से मिलने को प्रभु दर्शन का अनुरागी है।
है मस्त गृहस्थ में रह करके जानो सच्चा वैरागी है।।

वस्त्र फटे अरु दीन दशा, इक ब्राह्मण दीन पुकारत है।
द्वार खड्यो चहुं ओर लखे वह निर्मल नेक कहावत है।।
पास नहीं कछु भी धन दौलत बौलत ही मन भावत है।
कृष्ण रटे मुख से निशि-वासर नाम सुदामा बतावत है।।

आप सिवा न चहे अरु को, हम को वह दीखत है अति ज्ञानी।
हर्ष विषाद नहीं कछु व्यापत, कृष्ण सिवा कछु लाभ न हानी।।
है मति शु़द्ध पवित्र महा अति सार सुधामय बोलत बानी।
कौन पता किस ग्राम बसे अरु दीख रहा मति सात्विक प्रानी।।