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"शून्य / अपर्णा अनेकवर्णा" के अवतरणों में अंतर

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11:18, 8 जून 2016 के समय का अवतरण

यानी कुछ भी नहीं..
'कुछ होने' की पूर्णतः अनुपस्थिति...
पर जब अपनी पर आता है..
तो अपनी सभी कलाओं में
जगर-मगर
उपस्थित हो जाता है..

अंगड़ाइयाँ लेता है..
धीरे-धीरे सर घुमा कर
चारों तरफ़ का जायज़ा लेता है...
कहाँ तक फ़ैल जाना है?
किस हद तक डुबोना है?

जो न हो कर भी इतना होता है..
कि आप साँसों की पनाह माँगते
उपराते हैं.. उबरने की कोशिश फिसल जाती है..
आप फिर डूब जाते हैं..
अब आप हैं और आपका शून्य..
जब तक चाहेगा.. दबोचे रहेगा..

जब जाएगा तब भी किसी बाढ़ की कीच
की तरह अपने निशाँ छोड़ जाएगा..
कमाल है न.. कुछ नहीं होने के भी
होने के निशाँ होते हैं......

'शून्य का घनत्व' हम सबने भोगा है...
कहें न कहें.. ये निशाँ हम सबने पाले हैं