"कर-विद्रोह / भारत भाग्य विधाता / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'" के अवतरणों में अंतर
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− | + | ऊ घोर तमस, ऊ अंधियाला में कहीं उजाला तक नै झलकै | |
− | + | जों काहूं कुछ दिखै अगर तेॅ, अंग्रेजोॅ के मलका मलकै । | |
− | + | ऊ मलका हेने ही छेलै जै मेॅ मान सभे के फँसलोॅ, | |
− | + | फाँसी के रस्सा में जेना लाखो के गरदन टा कसलोॅ । | |
− | + | जो लगान खेतिहर लोगोॅ पर, तेॅ नमकोॅ पर होने ही कर, | |
− | + | भारत केरोॅ अर्थ व्यवस्था गोड़ोॅ सेॅ मूड़ी तक जर्जर । | |
− | + | गृह उद्योग रसातल मेॅ तेॅ, यंत्रा सिनी के मौज चलै, | |
− | + | भारत केरोॅ भाग्य बुढ़न्ती भाग्य विदेशी के मचलै । | |
− | + | गाँधी जी के मोॅन दुखोॅ से पर्वत नाँखी भारी-भारी, | |
− | + | की उपाय हेनोॅ बचलोॅ छै जे चिन्ता सेॅ रखेॅ उबारी । | |
− | + | खून खराबी सेॅ पाना ई व्यर्थ, अपावन, कुस्सित छेलै, | |
− | + | विनयी बनी अवज्ञा करवोॅ यही पंथ तेॅ अच्छा भेलै । | |
− | + | पूर्ण स्वराजोॅ के माँगोॅ केॅ घर-घर में पहुँचाना छेलै, | |
− | + | बापू के मन में तखनी ही ई विचार ठो अद्भुत ऐलै । | |
− | + | सबसेॅ पहलेॅ नमक करोॅ केॅ नै देना छै केकरौ आबेॅ, | |
− | + | सरकारोॅ लुग झुकना नै छै, कत्तो नी वैं जोर लगाबेॅ । | |
− | + | सब सोचै की होतै यै सेॅ, नमक करोॅ केॅ नै देला सेॅ, | |
− | + | पूर्ण स्वराज भला की ऐतै गाँधीजी के ई खेला सेॅ । | |
− | + | पर देखलकै सब्भै हौ सब गाँधी के आँधी के जोर, | |
− | + | टापे टुप अन्हरिया में हौ झकझक-झकझक भोर इंजोर । | |
− | + | देश भरी मेॅ नमक क्रांति हौ बिन्डोवे रं बढ़लोॅ गेलै, | |
− | + | अंग्रेजोॅ के हाल वहा रं, बोहोॅ मेॅ जों लकड़ी हेलै । | |
− | + | बिन हिंसा के क्रांति बापू के जे रं उधियैलै देशोॅ मेॅ, | |
− | + | जे रं कि नद्दी उफनावै भरलोॅ सावन के शेषोॅ में । | |
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+ | बापू के दाण्डी यात्रा सेॅ बिना करे के नमक उठैवोॅ, | ||
+ | की उद्देश्य ? यही तेॅ छेलै अंग्रेजोॅ के डोॅर भगैवोॅ । | ||
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+ | आत्मबलोॅ केॅ जन-जन मन मेॅ, जड़ता केॅ तोड़ी केॅ भरवोॅ, | ||
+ | दांडी यात्रा के मकसद तेॅ, सुतलोॅ सबकेॅ जागृत करवोॅ । | ||
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+ | जागी पड़लै देश समूचा, अंग्रेजोॅ के नींव हिलैलेॅ | ||
+ | अत्याचार सही केॅ सबटा, सत्याग्रह के पर्व निभैलेॅ । | ||
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22:13, 10 जून 2016 के समय का अवतरण
कर-विद्रोह
ऊ घोर तमस, ऊ अंधियाला में कहीं उजाला तक नै झलकै
जों काहूं कुछ दिखै अगर तेॅ, अंग्रेजोॅ के मलका मलकै ।
ऊ मलका हेने ही छेलै जै मेॅ मान सभे के फँसलोॅ,
फाँसी के रस्सा में जेना लाखो के गरदन टा कसलोॅ ।
जो लगान खेतिहर लोगोॅ पर, तेॅ नमकोॅ पर होने ही कर,
भारत केरोॅ अर्थ व्यवस्था गोड़ोॅ सेॅ मूड़ी तक जर्जर ।
गृह उद्योग रसातल मेॅ तेॅ, यंत्रा सिनी के मौज चलै,
भारत केरोॅ भाग्य बुढ़न्ती भाग्य विदेशी के मचलै ।
गाँधी जी के मोॅन दुखोॅ से पर्वत नाँखी भारी-भारी,
की उपाय हेनोॅ बचलोॅ छै जे चिन्ता सेॅ रखेॅ उबारी ।
खून खराबी सेॅ पाना ई व्यर्थ, अपावन, कुस्सित छेलै,
विनयी बनी अवज्ञा करवोॅ यही पंथ तेॅ अच्छा भेलै ।
पूर्ण स्वराजोॅ के माँगोॅ केॅ घर-घर में पहुँचाना छेलै,
बापू के मन में तखनी ही ई विचार ठो अद्भुत ऐलै ।
सबसेॅ पहलेॅ नमक करोॅ केॅ नै देना छै केकरौ आबेॅ,
सरकारोॅ लुग झुकना नै छै, कत्तो नी वैं जोर लगाबेॅ ।
सब सोचै की होतै यै सेॅ, नमक करोॅ केॅ नै देला सेॅ,
पूर्ण स्वराज भला की ऐतै गाँधीजी के ई खेला सेॅ ।
पर देखलकै सब्भै हौ सब गाँधी के आँधी के जोर,
टापे टुप अन्हरिया में हौ झकझक-झकझक भोर इंजोर ।
देश भरी मेॅ नमक क्रांति हौ बिन्डोवे रं बढ़लोॅ गेलै,
अंग्रेजोॅ के हाल वहा रं, बोहोॅ मेॅ जों लकड़ी हेलै ।
बिन हिंसा के क्रांति बापू के जे रं उधियैलै देशोॅ मेॅ,
जे रं कि नद्दी उफनावै भरलोॅ सावन के शेषोॅ में ।
बापू के दाण्डी यात्रा सेॅ बिना करे के नमक उठैवोॅ,
की उद्देश्य ? यही तेॅ छेलै अंग्रेजोॅ के डोॅर भगैवोॅ ।
आत्मबलोॅ केॅ जन-जन मन मेॅ, जड़ता केॅ तोड़ी केॅ भरवोॅ,
दांडी यात्रा के मकसद तेॅ, सुतलोॅ सबकेॅ जागृत करवोॅ ।
जागी पड़लै देश समूचा, अंग्रेजोॅ के नींव हिलैलेॅ
अत्याचार सही केॅ सबटा, सत्याग्रह के पर्व निभैलेॅ ।