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"हम पात्र हैं किसी के / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

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10:19, 28 फ़रवरी 2008 का अवतरण

हम पात्र हैं किसी के

रख दिए गए यहाँ--

ख़ाली,

कभी कुछ भरने के लिए;

कभी कुछ उँड़ेलने के लिए;

इच्छा के विरुद्ध बने

और बन कर रखे रहने के लिए

न कुछ कहने के लिए :

न कुछ सुनने के लिए :

केवल काल के हाथ से टूट कर

बिखरने के लिए ।