"कृष्ण सुदामा चरित्र / शिवदीन राम जोशी / पृष्ठ 2" के अवतरणों में अंतर
पंक्ति 11: | पंक्ति 11: | ||
}} | }} | ||
<poem> | <poem> | ||
+ | परिचय और स्थिति | ||
+ | |||
+ | भक्त सुदामा ब्रह्मण थे, | ||
+ | रहते थे देश विदर्भ नगर, | ||
+ | मीत प्रभु के सच्चे थे, | ||
+ | पत्नि भी पतिव्रता थी घर | | ||
+ | कुछ किस्सा उनका बयां करू, | ||
+ | छांया दारिद्र की घर पर थी, | ||
+ | वो भगवत रूप परायण थे, | ||
+ | आशा उन्हीं पर निर्भर थी | | ||
+ | थी बुद्धिमती पतिव्रता वाम, | ||
+ | गुणवान चतुर सुन्दर नारी, | ||
+ | पति इच्छा अनुकूल चले, | ||
+ | थी श्रीपति को अतिशय प्यारी | | ||
+ | वो दुःख सुख सभी भोगती थी, | ||
+ | पर बात न जिह्वा पर आती, | ||
+ | नित मीठे बैन बोलती थी, | ||
+ | नहीं ध्यान बुरा दिल पर लाती | | ||
+ | |||
बहुत मुद्दतों बाद कृष्ण पाया, | बहुत मुद्दतों बाद कृष्ण पाया, | ||
पाया प्रेमी का ठीक पता। | पाया प्रेमी का ठीक पता। |
05:55, 12 जून 2016 का अवतरण
परिचय और स्थिति
भक्त सुदामा ब्रह्मण थे,
रहते थे देश विदर्भ नगर,
मीत प्रभु के सच्चे थे,
पत्नि भी पतिव्रता थी घर |
कुछ किस्सा उनका बयां करू,
छांया दारिद्र की घर पर थी,
वो भगवत रूप परायण थे,
आशा उन्हीं पर निर्भर थी |
थी बुद्धिमती पतिव्रता वाम,
गुणवान चतुर सुन्दर नारी,
पति इच्छा अनुकूल चले,
थी श्रीपति को अतिशय प्यारी |
वो दुःख सुख सभी भोगती थी,
पर बात न जिह्वा पर आती,
नित मीठे बैन बोलती थी,
नहीं ध्यान बुरा दिल पर लाती |
बहुत मुद्दतों बाद कृष्ण पाया,
पाया प्रेमी का ठीक पता।
उठ दौड़े, चौके, प्रभु बोले,
है कहां सुदामा बता बता।
सुनते ही नाम सुदामा का,
अति उर में प्रेम उमंग आया।
प्रेम प्रभु तो खुद ही थे,
हद प्रेम जिन्होंने बरसाया।
हाल सुने करुणानिधि ने करुणेश करी करुणा अति भारी,
मीत सखा अरु प्रीत सखा सच आवत यों बहु याद तिहारी।
मीत बड़े सब जानत आप, बड़े हमसे सुधि लीन हमारी,
यों उठ दौरि न ढ़ील करी कित रंक सुदामा व कृष्ण मुरारी।
उठ दौडे पैर पयादे ही,
झट पट से प्रभु बाहर आये।
बोले शुभ दिवस आज का है,
हम प्रेमी के दर्शन पाये।
प्रीती व रीति न छानी छुपे झट प्रीतम कृष्ण सखा ढिग आये।
देखत ही उपज्यो सुख आनन्द वो कविता कवि कौन बनाये।
अंग व अंग मिलाकर नैनन, नैनन से प्रभु नीर बहाये।
नेह निबाहन हार प्रभो अति स्नेह सुधामय बोल सुनाये।
प्रभु मिले गले से गला लगा
चरणोदक लीनो धो धोकर।
बोले प्रेम भरी वाणी
पुछे हरि बतियां रो-रो कर।
निज आसन पे बैठा करके
सब सामग्री कर में लीनी।
चित प्रसन्नता से कृष्ण चन्द्र
विविध भांति पूजा कीनी।
बोले न मिले अब तक न सखा
तुम रहे कहां सुध भूल गये।
आनन्द से क्षेम कुशल पूछी
प्रभु प्रेम हिंडोले झूल गये।
रुक्मणि स्वयं सखियां मिलकर
सब प्रेम से पूजन करती थी।
स्नान कराने को उनको
निज हाथों पानी भरती थी।