"कृष्ण सुदामा चरित्र / शिवदीन राम जोशी / पृष्ठ 3" के अवतरणों में अंतर
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− | चंवर मोरछल करते थे | + | वह सखा आपके प्रेमी हैं, |
+ | देखत ही सनमान करें, | ||
+ | सब दूर व्यथा हो जावेगी, | ||
+ | कर कृपा तुम्हे धनवान करें | | ||
+ | बतियाँ पत्नि की सुनी ब्राह्मण, | ||
+ | भयभीत हुआ घबराय गया, | ||
+ | बोल व्यथा के सुन श्रवणा, | ||
+ | चुप चाप रहा बोला न गया | | ||
+ | कुछ देर बाद समझाने को, | ||
+ | बोला तू सच तो कहती है, | ||
+ | मगर हुआ क्या आज प्रिये, | ||
+ | हर रोज हरष से रहती है | | ||
+ | ये अश्रु बिंदु किसलिए आज, | ||
+ | दुखमयी बात क्यों बोल रही, | ||
+ | क्यों तुली कोटि पर माया की, | ||
+ | शुभ सुखद ज्ञान को तोल रही | | ||
+ | हैं कृष्ण सखा मेरे प्रेमी, | ||
+ | धन लाने को कैसे जाऊं, | ||
+ | निष्काम भक्ति की अब तक तो, | ||
+ | किस भांति स्वार्थ अब अपनाऊँ | | ||
+ | है दूर द्वारिका पास नहीं, | ||
+ | मैं वृद्ध हुआ अकुलाता हूँ, | ||
+ | मग चलने की सामर्थ्य नहीं, | ||
+ | इसलिए तुझे समझाता हूँ | | ||
+ | है दया देव की अपने पर, | ||
+ | इसलिए नहीं धनवान किया, | ||
+ | सात्विक भाव ही रहा सदा, | ||
+ | प्रिय दिल में कब अरमान किया | | ||
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+ | चंवर मोरछल करते थे | ||
सेवा से दिल न अघाते थे। | सेवा से दिल न अघाते थे। | ||
निज प्रेमी के काम कृष्ण | निज प्रेमी के काम कृष्ण |
06:32, 12 जून 2016 का अवतरण
वह सखा आपके प्रेमी हैं,
देखत ही सनमान करें,
सब दूर व्यथा हो जावेगी,
कर कृपा तुम्हे धनवान करें |
बतियाँ पत्नि की सुनी ब्राह्मण,
भयभीत हुआ घबराय गया,
बोल व्यथा के सुन श्रवणा,
चुप चाप रहा बोला न गया |
कुछ देर बाद समझाने को,
बोला तू सच तो कहती है,
मगर हुआ क्या आज प्रिये,
हर रोज हरष से रहती है |
ये अश्रु बिंदु किसलिए आज,
दुखमयी बात क्यों बोल रही,
क्यों तुली कोटि पर माया की,
शुभ सुखद ज्ञान को तोल रही |
हैं कृष्ण सखा मेरे प्रेमी,
धन लाने को कैसे जाऊं,
निष्काम भक्ति की अब तक तो,
किस भांति स्वार्थ अब अपनाऊँ |
है दूर द्वारिका पास नहीं,
मैं वृद्ध हुआ अकुलाता हूँ,
मग चलने की सामर्थ्य नहीं,
इसलिए तुझे समझाता हूँ |
है दया देव की अपने पर,
इसलिए नहीं धनवान किया,
सात्विक भाव ही रहा सदा,
प्रिय दिल में कब अरमान किया |
चंवर मोरछल करते थे
सेवा से दिल न अघाते थे।
निज प्रेमी के काम कृष्ण
सब खुद ही करना चाहते थे।
यह आनंद अद्भुत देख-देख,
द्विज सोचे यह जाने न मुझे |
करते हैं स्वागत धोखे में,
प्रभु शायद पहचाने न मुझे |
भक्त की कल्पना सभी,
उर अन्तर्यामी जान गए |
भक्त सुदामा के दिल की,
बाते सब पहचान गए |
बोले घनश्याम याद है कुछ,
जब हम-तुम दोनों पढ़ते थे |
थी कृपा गुरु की अपने पर,
पढ़-पढ़ के आगे बढ़ते थे |
है बात याद बन में भेजे,
सब हाल कहे प्रभु दर्शाके |
उस समय रहे बन माहिं दोऊ,
घबराए मारे वर्षा के |
दिल चिंता बढ़ी गुरूजी के,
कारण आंधी के आने से |
बिजली की तड़क निराली थी,
और पानी के बढ़ जाने से |
एक वृक्ष की ओट में, तुम हम बैठे जाय |
वर्षा रुकती थी नहीं, लीनी क्षुधा सताय |