"कृष्ण सुदामा चरित्र / शिवदीन राम जोशी / पृष्ठ 4" के अवतरणों में अंतर
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+ | स्त्री और बाल बच्चे धाम धान संवार राखे , | ||
+ | एते नष्ट होते कष्ट दिल में उठता है | | ||
+ | ऐसी यह माया, तासे बिगर जात काया, | ||
+ | लाखों भरमाया ऐसा झूंठ व्यर्थ नाता है | | ||
+ | कहता सुदामा प्रिय राम-कृष्ण राम भजो, | ||
+ | आनन्द ले सच्चा विप्र जो गोविन्द गुण गाता है | | ||
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+ | अपना ना कोई प्रिया सुन री दे ध्यान चित्त, | ||
+ | संसार ये असार तामे झूठा ही नाता है | | ||
+ | स्वार्थ के मीत देख ना माने , कर प्रीत देख, | ||
+ | ऐसे सब मात-तात जात व्यर्थ भ्राता है | | ||
+ | सुत और दारा देख प्यारा से भी प्यारा देख, | ||
+ | सारा ही पसारा देख द्वन्द सा दिखता है | | ||
+ | कहता सुदामा तन धन अरु धाम झूठा , | ||
+ | सच्चा तो वाही विप्र गोविन्द गुण गाता है | | ||
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+ | बेर-बेर समझाव हूँ, आवत नहीं यकीन | | ||
+ | माया में फँस-फँस मरे , केते चतुर प्रवीण || | ||
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+ | है खान अवगुणों की माया, | ||
+ | हरि सुमरिण को भुलवाती है, | ||
+ | कहती है लाने को उसको, | ||
+ | घर बैठे व्याधि लगाती है | | ||
+ | माया वाले अंधे होकर, | ||
+ | नहीं सुमरिन जाप किया करते, | ||
+ | सत्कर्मों से रह दूर सदा, | ||
+ | मन माना पाप किया करते | | ||
+ | ऐ प्रिया इसी से बिता रहा, | ||
+ | यह समय प्रभु गुण गा-गा के, | ||
+ | अब हँसी बुढ़ापे में होगी, | ||
+ | माँगुगा द्रव्य वहाँ जाके | | ||
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06:43, 12 जून 2016 का अवतरण
केते ही प्रवीण फँसे माया के दल-दल में ,
ऐसा है विचित्र जाल भेद हूँ न पता है |
स्त्री और बाल बच्चे धाम धान संवार राखे ,
एते नष्ट होते कष्ट दिल में उठता है |
ऐसी यह माया, तासे बिगर जात काया,
लाखों भरमाया ऐसा झूंठ व्यर्थ नाता है |
कहता सुदामा प्रिय राम-कृष्ण राम भजो,
आनन्द ले सच्चा विप्र जो गोविन्द गुण गाता है |
अपना ना कोई प्रिया सुन री दे ध्यान चित्त,
संसार ये असार तामे झूठा ही नाता है |
स्वार्थ के मीत देख ना माने , कर प्रीत देख,
ऐसे सब मात-तात जात व्यर्थ भ्राता है |
सुत और दारा देख प्यारा से भी प्यारा देख,
सारा ही पसारा देख द्वन्द सा दिखता है |
कहता सुदामा तन धन अरु धाम झूठा ,
सच्चा तो वाही विप्र गोविन्द गुण गाता है |
बेर-बेर समझाव हूँ, आवत नहीं यकीन |
माया में फँस-फँस मरे , केते चतुर प्रवीण ||
है खान अवगुणों की माया,
हरि सुमरिण को भुलवाती है,
कहती है लाने को उसको,
घर बैठे व्याधि लगाती है |
माया वाले अंधे होकर,
नहीं सुमरिन जाप किया करते,
सत्कर्मों से रह दूर सदा,
मन माना पाप किया करते |
ऐ प्रिया इसी से बिता रहा,
यह समय प्रभु गुण गा-गा के,
अब हँसी बुढ़ापे में होगी,
माँगुगा द्रव्य वहाँ जाके |
अंग व अंग मिलाकर नैनन, नैनन से प्रभु नीर बहाये।
नेह निबाहन हार प्रभो अति स्नेह सुधामय बोल सुनाये।
प्रभु मिले गले से गला लगा,
चरणोदक लीनो धो-धोकर |
बोले प्रेम भरी वाणी,
पूछि हरि बतियाँ रो-रोकर |
निज आसन पे बैठा करके,
सब सामग्री कर में लीनी |
चित्त प्रसन्नता से कृष्णचन्द्र,
विविध भांति पूजा कीनी |
बोले न मिले अब तक न सखा,
तुम रहे कहाँ सुध भूल गये |
आनन्द से क्षेम कुशल पूछी,
प्रभु प्रेम हिंडोले झूल गये |
रुक्मणि स्वयं सखियाँ मिलकर,
सब प्रेम से पूजन करती थी |
स्नान करने को उनको,
निज हाथों पानी भरती थी |