भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कृष्ण सुदामा चरित्र / शिवदीन राम जोशी / पृष्ठ 5" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो
पंक्ति 11: पंक्ति 11:
 
}}
 
}}
 
<poem>
 
<poem>
 +
सत्य विचार कहूँ सुनारी प्रिय यो जग झूठ मुझे हरसावे |
 +
प्रीति बिना परमेश्वर के धृक  है धन जो धनवान कहावे ||
 +
धन्य उन्हें धन राम अमूल्य की खोज लगा कर मौज उडावे |
 +
ऐ प्रिय तू मति मोय कहे कछु कृष्ण बिना नहीं चैन लाखवे ||
 +
 +
भक्त वही भगवान भजे धन दौलत पाय न राम भुलावे |
 +
दान करे सनमान करे नर संतान को निज शीश झुकावे ||
 +
मन्दिर बाग़ तड़ाग बनाकर जीवन को जग माही बितावे||
 +
ऐ प्रिय तू मति मोय कहे कछु कृष्ण बिना नहीं चैन लाखवे ||
 +
 +
पति देव विनती करहुँ मान लेहु मम बात |
 +
दुःख संकट सब टारी हैं वह त्रिभुवन के नाथ ||
 +
 +
स्वामी ने सब ठीक कहा,
 +
        जो हाल द्रव्य के  होते हैं,
 +
है दिल में दर्द यही मेरे,
 +
          जब भूखे बच्चे सोते हैं |
 +
है हाल वही  पति जागने पर,
 +
      जो हाल काल में है गुजरा,
 +
हर रोज नहीं देखा जाता,
 +
      गम खाली से यह पेट भरा |
 +
जाओ जल्दी देरी न करो,
 +
          वह दीनानाथ कहाते हैं,
 +
भक्तों के हितकारी बन,
 +
        बिगरी को शीघ्र बनाते है |
 +
तुम धन के हित सकुचाते हो,
 +
        दर्शन हित ही तो जाओ,
 +
बिन मांगे ही दे देंवेगे,
 +
    द्रव्य लेकर नाथ शीघ्र आओ |
 +
प्रसन्न चित्त से सेवा कर,
 +
    नित गोविन्द के गुन गाऊँगी,
 +
तुम कृष्ण चन्द्र के गुन गाना,
 +
        सेवा कर प्रभु रिझऊँगी |
 +
 +
  
 
चंवर मोरछल करते थे,  
 
चंवर मोरछल करते थे,  

06:58, 12 जून 2016 का अवतरण

सत्य विचार कहूँ सुनारी प्रिय यो जग झूठ मुझे हरसावे |
प्रीति बिना परमेश्वर के धृक है धन जो धनवान कहावे ||
धन्य उन्हें धन राम अमूल्य की खोज लगा कर मौज उडावे |
ऐ प्रिय तू मति मोय कहे कछु कृष्ण बिना नहीं चैन लाखवे ||

भक्त वही भगवान भजे धन दौलत पाय न राम भुलावे |
दान करे सनमान करे नर संतान को निज शीश झुकावे ||
मन्दिर बाग़ तड़ाग बनाकर जीवन को जग माही बितावे||
ऐ प्रिय तू मति मोय कहे कछु कृष्ण बिना नहीं चैन लाखवे ||

पति देव विनती करहुँ मान लेहु मम बात |
दुःख संकट सब टारी हैं वह त्रिभुवन के नाथ ||

स्वामी ने सब ठीक कहा,
        जो हाल द्रव्य के होते हैं,
है दिल में दर्द यही मेरे,
           जब भूखे बच्चे सोते हैं |
है हाल वही पति जागने पर,
       जो हाल काल में है गुजरा,
हर रोज नहीं देखा जाता,
       गम खाली से यह पेट भरा |
जाओ जल्दी देरी न करो,
          वह दीनानाथ कहाते हैं,
भक्तों के हितकारी बन,
        बिगरी को शीघ्र बनाते है |
तुम धन के हित सकुचाते हो,
         दर्शन हित ही तो जाओ,
बिन मांगे ही दे देंवेगे,
     द्रव्य लेकर नाथ शीघ्र आओ |
प्रसन्न चित्त से सेवा कर,
     नित गोविन्द के गुन गाऊँगी,
तुम कृष्ण चन्द्र के गुन गाना,
        सेवा कर प्रभु रिझऊँगी |



चंवर मोरछल करते थे,
        सेवा से दिल न अघाते थे |
यह आनन्द अद्भुत देख-देख,
   द्विज जाने यह जाने न मुझे |
करते हैं स्वागत धोके में,
     प्रभु शायद पहचाने न मुझे |
भक्त की कल्पना सभी,
        उर अन्तर्यामी जान गये |
भक्त सुदामा के दिल की,
       बाते सब ही पहचान गये |
बोले घनश्याम याद है कछु,
    जब हम तुम दोनों पढ़ते थे |
थी कृपा गुरु की अपने पर,
     पढ़-पढ़ के आगे बढ़ाते थे |