"कृष्ण सुदामा चरित्र / शिवदीन राम जोशी / पृष्ठ 6" के अवतरणों में अंतर
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+ | मैं कर जोर करूँ विनती पति कृष्ण सखा निज मीत तिहारो | | ||
+ | जाय मिलो अरु हाल कहो अति कष्ट करे दुःख दैन्य हत्यारो, | ||
+ | ये सब बात विचार पति अब कृष्णपुरी तुम शीघ्र सिधारो | | ||
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+ | मान करे मिलते ही मन-मोहन दूर करें विपदा दुःख थारो, | ||
+ | दौलत पाय भजो हरि को पति जीवन को फल नेक विचारो | | ||
+ | बात कहूँ फिर नाथ यही हरि दर्शन से यह जन्म सुधारो, | ||
+ | दूर न है कबहूं वह ग्राम बसे मन मोहन नन्द दुलारों | | ||
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+ | भक्त सुदामा ने कहा, सुनरी बावरी वाम| | ||
+ | झूठा मंगू द्रव्य क्या, निर्धन का धन राम || | ||
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+ | मानस को तन है तो, मन करके भजो ईश, | ||
+ | अकारण दयालु दाता, सदा शुभकारी है | | ||
+ | श्रद्धा अरु भक्ति से, शक्ति कर अमोघ पैदा, | ||
+ | अनुभव को मार्ग सत्य, मिथ्या संसारी है | | ||
+ | पूर्व जन्म पुण्यहूँ से, मार्ग सुमार्ग मिले, | ||
+ | जन्म-जन्मान्तर की बिगरी सुधारी है | | ||
+ | कहता है सुदामा प्रभु ही प्रतिपाल करे, | ||
+ | उनही को सत्य प्रिया गावे वेद चारि हैं | | ||
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+ | जड़ अरु चेतन में प्रभु का प्रकाश प्रिये, | ||
+ | मानव विचित्र खूब बुद्धि के बनाये हैं | | ||
+ | केते हैं भक्त योगी योग में तल्लीन रहते, | ||
+ | केते ही अफंडी बन दुनियां में आये हैं | | ||
+ | केते हैं शरीफ सज्जन जन सुशील शील, | ||
+ | केते ही मानव शुद्ध कृष्ण गुण गए हैं | | ||
+ | कहता सुदामा प्रिये राम-कृष्ण भजे सार, | ||
+ | बात यह विचारि देख वेही सुख पाए हैं | | ||
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+ | जो कयम चीज नहीं रहती, | ||
+ | उस चीज का मांगना वाम वृथा, | ||
+ | जीवन मेरा तो भगवत है, | ||
+ | धन माल और आराम वृथा । | ||
+ | सब समय हमारा बीत गया, | ||
+ | यह चौथापन भी आन चला, | ||
+ | श्रीराम कृष्ण रट मगन रहा, | ||
+ | दुःख सुख का मुझे पता न चला । | ||
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08:14, 12 जून 2016 का अवतरण
आप विचार कियो अति सुन्दर मोर विचारन को उर धारो,
मैं कर जोर करूँ विनती पति कृष्ण सखा निज मीत तिहारो |
जाय मिलो अरु हाल कहो अति कष्ट करे दुःख दैन्य हत्यारो,
ये सब बात विचार पति अब कृष्णपुरी तुम शीघ्र सिधारो |
मान करे मिलते ही मन-मोहन दूर करें विपदा दुःख थारो,
दौलत पाय भजो हरि को पति जीवन को फल नेक विचारो |
बात कहूँ फिर नाथ यही हरि दर्शन से यह जन्म सुधारो,
दूर न है कबहूं वह ग्राम बसे मन मोहन नन्द दुलारों |
भक्त सुदामा ने कहा, सुनरी बावरी वाम|
झूठा मंगू द्रव्य क्या, निर्धन का धन राम ||
मानस को तन है तो, मन करके भजो ईश,
अकारण दयालु दाता, सदा शुभकारी है |
श्रद्धा अरु भक्ति से, शक्ति कर अमोघ पैदा,
अनुभव को मार्ग सत्य, मिथ्या संसारी है |
पूर्व जन्म पुण्यहूँ से, मार्ग सुमार्ग मिले,
जन्म-जन्मान्तर की बिगरी सुधारी है |
कहता है सुदामा प्रभु ही प्रतिपाल करे,
उनही को सत्य प्रिया गावे वेद चारि हैं |
जड़ अरु चेतन में प्रभु का प्रकाश प्रिये,
मानव विचित्र खूब बुद्धि के बनाये हैं |
केते हैं भक्त योगी योग में तल्लीन रहते,
केते ही अफंडी बन दुनियां में आये हैं |
केते हैं शरीफ सज्जन जन सुशील शील,
केते ही मानव शुद्ध कृष्ण गुण गए हैं |
कहता सुदामा प्रिये राम-कृष्ण भजे सार,
बात यह विचारि देख वेही सुख पाए हैं |
जो कयम चीज नहीं रहती,
उस चीज का मांगना वाम वृथा,
जीवन मेरा तो भगवत है,
धन माल और आराम वृथा ।
सब समय हमारा बीत गया,
यह चौथापन भी आन चला,
श्रीराम कृष्ण रट मगन रहा,
दुःख सुख का मुझे पता न चला ।