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"कृष्ण सुदामा चरित्र / शिवदीन राम जोशी / पृष्ठ 7" के अवतरणों में अंतर
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+ | अव्वल तो जाना है मुश्किल, | ||
+ | जाने को जो तू कहती है, | ||
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+ | मन शङ्का ये ही रहती है । | ||
+ | सेना गजरथ घोडे भृत्य, | ||
+ | कितने लाख सवार वहां, | ||
+ | हैं राजा कृष्ण्चन्द्र प्यारी, | ||
+ | होता है नित दरबार वहां । | ||
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08:12, 15 जून 2016 का अवतरण
जो कयम चीज नहीं रहती,
उस चीज का मांगना वाम वृथा,
जीवन मेरा तो भगवत है,
धन माल और आराम वृथा ।
सब समय हमारा बीत गया,
यह चौथापन भी आन चला,
श्रीराम कृष्ण रट मगन रहा,
दुःख सुख का मुझे पता न चला ।
अब जाने तू कहती है,
जाऊँ कैसे सुन प्राण प्रिया,
वहाँ जाकर भेंट करूँगा क्या,
कैसे होगी पह्चान प्रिया ।
अव्वल तो जाना है मुश्किल,
जाने को जो तू कहती है,
जाऊं तो क्या भेंट करूं,
मन शङ्का ये ही रहती है ।
सेना गजरथ घोडे भृत्य,
कितने लाख सवार वहां,
हैं राजा कृष्ण्चन्द्र प्यारी,
होता है नित दरबार वहां ।